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Monday, 21 January 2019

अभागिन

कदाचित्, न कहना खुद को तुम अभागिन!

स्नेह वंचित, एक बस तू ही नहीं,
नीर सिंचित, नैन बस इक तेरे ही नहीं,
कंपित हृदय, सिर्फ तेरा ही नहीं,
किंचित्, भरम ये रखना नहीं,
नैन कितनों के जगे, तारे गिन-गिन!

कदाचित्, न कहना खुद को तुम अभागिन!

भाग्य, लिखता कोई खुद से नहीं,
मनचाहा, मिलता हमेशा सबको नहीं,
हासिल है जो, वो कम तो नहीं!
पाकर उसे, बस खोना नहीं,
सहेज लेना, हिस्से के वो पलक्षिण!

कदाचित्, न कहना खुद को तुम अभागिन!

पिपासा है ये, जो मिटती नहीं,
अभिलाषा अनन्त, कभी घटती नहीं,
तृष्णा है ये, कभी मरती नहीं,
खुशियाँ कहीं, बिकती नहीं,
पलटते नहीं, बीत जाते हैं जो दिन!

कदाचित्, न कहना खुद को तुम अभागिन!

विधि का विधान, जाने विधाता,
न जाने भाग्य में, किसके लिखा क्या,
पर, हर रात की होती है सुबह,
सदा ही, अंधेरा रहता नहीं,
हो न हो, बुझ रहा हो रात पलक्षिण।

कदाचित्, न कहना खुद को तुम अभागिन!