अपना कोई रहगुजर, तलाशती है हर नजर...
वो रंग है, फिर भी वो कितनी उदास है!
उसे भी, किसी की तलाश है...
दिखना है उसे भी, निखर जाना है उसे भी!
बिखर कर, संग ही किसी के....
जीना है उसे भी!
प्रखर है वो, लेकिन कितनी निराश है!
साथी बिना, रंग भी हताश है...
आँचल ही किसी के, विहँसना है उसे भी!
लिपट कर, अंग ही किसी के.....
मिटना है उसे भी!
खुश्बू है वो, उसे साँसों की तलाश है!
तृप्त है, फिर कैसी ये प्यास है?
मन में किसी के, बस उतरना है उसे भी!
सिमट कर, जेहन में किसी के....
रहना है उसे भी!
वो श्रृंगार है, उसे नजर की तलाश है!
सौम्य है, पर चाहत की आस है...
नजर में किसी के, रह जाना है उसे भी!
निखर कर, बदन पे किसी के...
दिखना है उसे भी!
रिक्तता है, जिन्दा सभी में पिपास है!
बाकि, नदियों में भी प्यास है...
इक समुन्दर से, बस मिलना है उसे भी!
उतर कर, दामन में उसी के....
मिटना है उसे भी!
अपना कोई रहगुजर, तलाशती है हर नजर...
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
वो रंग है, फिर भी वो कितनी उदास है!
उसे भी, किसी की तलाश है...
दिखना है उसे भी, निखर जाना है उसे भी!
बिखर कर, संग ही किसी के....
जीना है उसे भी!
प्रखर है वो, लेकिन कितनी निराश है!
साथी बिना, रंग भी हताश है...
आँचल ही किसी के, विहँसना है उसे भी!
लिपट कर, अंग ही किसी के.....
मिटना है उसे भी!
खुश्बू है वो, उसे साँसों की तलाश है!
तृप्त है, फिर कैसी ये प्यास है?
मन में किसी के, बस उतरना है उसे भी!
सिमट कर, जेहन में किसी के....
रहना है उसे भी!
वो श्रृंगार है, उसे नजर की तलाश है!
सौम्य है, पर चाहत की आस है...
नजर में किसी के, रह जाना है उसे भी!
निखर कर, बदन पे किसी के...
दिखना है उसे भी!
रिक्तता है, जिन्दा सभी में पिपास है!
बाकि, नदियों में भी प्यास है...
इक समुन्दर से, बस मिलना है उसे भी!
उतर कर, दामन में उसी के....
मिटना है उसे भी!
अपना कोई रहगुजर, तलाशती है हर नजर...
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा