देखो ना, बीत गई उम्र सारी पर बीता न बचपना।
दौड़ पड़ता हूँ आज भी खेतों की आरी पर,
विचलित होता हूँ अब भी पतंगें कटती देखकर,
बेताब झूलने को मन झूलती सी डाली पर,
मन चाहता है अब, कर लूँ मैं फिर शैतानियाँ ....
देखो ना, बीत गई उम्र सारी पर बीता न बचपना,
लटकते बेरी पेड़ों के, मुझको हैं ललचाते,
ठंढी छाँव उन पेड़ों के, रह रहकर पास बुलाते,
मचल जाता हूँ मै फिर देखकर गिल्ली डंडे,
कहता है फिर ये मन, चल खेले कंचे गोलियाँ.....
देखो ना, बीत गई उम्र सारी पर बीता न बचपना।
यौवन की दहलीज पर उम्र हमें लेकर आया,
छूट गए सब खेल खिलौने, छूटा वो घर आंगना,
बचपन के वो साथी छूटे, छूटी सब शैतानियाँ,
पर माने ना ये मन , करता यह नादानियाँ....
देखो ना, बीत गई उम्र सारी पर बीता न बचपना।
दौड़ पड़ता हूँ आज भी खेतों की आरी पर,
विचलित होता हूँ अब भी पतंगें कटती देखकर,
बेताब झूलने को मन झूलती सी डाली पर,
मन चाहता है अब, कर लूँ मैं फिर शैतानियाँ ....
देखो ना, बीत गई उम्र सारी पर बीता न बचपना,
लटकते बेरी पेड़ों के, मुझको हैं ललचाते,
ठंढी छाँव उन पेड़ों के, रह रहकर पास बुलाते,
मचल जाता हूँ मै फिर देखकर गिल्ली डंडे,
कहता है फिर ये मन, चल खेले कंचे गोलियाँ.....
देखो ना, बीत गई उम्र सारी पर बीता न बचपना।
यौवन की दहलीज पर उम्र हमें लेकर आया,
छूट गए सब खेल खिलौने, छूटा वो घर आंगना,
बचपन के वो साथी छूटे, छूटी सब शैतानियाँ,
पर माने ना ये मन , करता यह नादानियाँ....
देखो ना, बीत गई उम्र सारी पर बीता न बचपना।