चली रे, ये पुरवा, कहाँ ले चली रे!
खुद भटके, भटकाए, कौन दिशा ले जाए,
बहा उस ओर, कहाँ ले जाए,
जाने, कौन गली रे!
चली रे, ये पुरवा, कहाँ ले चली रे!
बिछड़े गाँव सभी, बह गए बंधे नाव सभी,
तिनके-तिनके, बिखरे मन के,
खाली, हर डाली रे!
चली रे, ये पुरवा, कहाँ ले चली रे!
नई सी हर बात, करे है मन के पात-पात,
नव-स्वप्न तले, ढ़ल जाए रात,
इक साँस, ढ़ली रे!
चली रे, ये पुरवा, कहाँ ले चली रे!
पीछे छूट चले, कितनी बातें, कितने बंध,
निशिगधा के, वो महकाते गंध,
खोई, बंद कली रे!
चली रे, ये पुरवा, कहाँ ले चली रे!
वो डगर, वो ही घर, चल, वापस ले चल,
या, ले आ, वो सारे बिछड़े पल,
वही, नेह गली रे!
चली रे, ये पुरवा, कहाँ ले चली रे!
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