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Thursday, 13 April 2023

याद

बांध गया कोई, अपनी ही यादों से!

वो दिन थे या, पलक्षिण थे,
पहर गुजरा, अलसाया सा दिन गुजरा, 
रात गई, जुगनू की बारात गई,
युग बीता, उन जज्बातों से!

बांध गया कोई, अपनी ही यादों से!

भटके मन, उन गलियों में,
आहट जिनसे, उन पल की ही आए,
उम्मीदें, उन लम्हातों से ही बांधे,
बिखरे खुद, जो हालातों से!

बांध गया कोई, अपनी ही यादों से!

अक्सर, आ घेरे वो लम्हा,
पूछे मुझसे, वो था क्यूं इतना तन्हा!
सिमट गए, क्यूं, बलखाते पल!
बारिश की, भींगी रातों से!

बांध गया कोई, अपनी ही यादों से!

चांद ढ़ले, जब तारों संग,
बिखराए, उनके ही, आंचल के रंग,
सुधि हारे दो नैन दिवस ही भूले,
झिलमिल सी, उन बातों में!

बांध गया कोई, अपनी ही यादों से!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Friday, 16 August 2019

उजली किरण

कोई उजली किरण, कभी तो छू लेगी बदन! 

फिर ना छलेगी, हमें ये अंधेरी सी रात,
चलेगी संग मेरे जब, कभी ये तारों की बारात,
अंधियारों में फूटेगी, आशा की इक लौ,
मन प्रांगण, जगमगाएंगे दिये सौ,
रौशन होगी, अन्तःकिरण!

कोई उजली किरण, कभी तो छू लेगी बदन! 

जागेगा प्रभात, डूबेगी ये घनेरी रात,
चढ़ किरणों के रथ, चहकती आएगी प्रभात,
टूटेंगे दुःस्वप्न, अरमानों के सेज सजेंगे,
अंधेरे मन में, अन्तःज्योत जलेंगे, 
जगाएगी, इक रश्मि-किरण !

कोई उजली किरण, कभी तो छू लेगी बदन! 

पल में ढ़लेगी, फिर न छलेगी रात,
बात सुहानी कोई कहानी, मुझसे कहेगी रात,
रैन सजेंगे, खोकर स्वप्न में नैन जगेंगें,
अंधियारों से, यूँ इक स्वप्न छीनेंगे,
मिलेगी स्वप्निल, प्रभाकिरण !

कोई उजली किरण, कभी तो छू लेगी बदन! 

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा