बांध गया कोई, अपनी ही यादों से!
वो दिन थे या, पलक्षिण थे,
पहर गुजरा, अलसाया सा दिन गुजरा,
रात गई, जुगनू की बारात गई,
युग बीता, उन जज्बातों से!
बांध गया कोई, अपनी ही यादों से!
भटके मन, उन गलियों में,
आहट जिनसे, उन पल की ही आए,
उम्मीदें, उन लम्हातों से ही बांधे,
बिखरे खुद, जो हालातों से!
बांध गया कोई, अपनी ही यादों से!
अक्सर, आ घेरे वो लम्हा,
पूछे मुझसे, वो था क्यूं इतना तन्हा!
सिमट गए, क्यूं, बलखाते पल!
बारिश की, भींगी रातों से!
बांध गया कोई, अपनी ही यादों से!
चांद ढ़ले, जब तारों संग,
बिखराए, उनके ही, आंचल के रंग,
सुधि हारे दो नैन दिवस ही भूले,
झिलमिल सी, उन बातों में!
बांध गया कोई, अपनी ही यादों से!
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