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Friday, 18 March 2022

रंग

कुछ रंग ही तो, भरे थे हमनें,
तुम्हारी मांग में,
और तुमने, रंग डाले,
सारे, सपने मेरे!

और, आज भी, दैदिप्य सा है,
तुम्हारे भाल पर,
सफेद, बालों के मध्य,
वही, लाल रंग!

और इधर! चुप, मंत्र-मुग्ध मैं,
ताकूँ, वो ही रंग,
बिखरे, जो यकीन बन,
जिंदगी में, मेरे!

कुछ रंग ही तो, भरे थे हमनें,
बुने, कुछ ख्वाब,
और तुमने, रंग डाले,
सारे, ख्वाब मेरे!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)
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परिकल्पनाओं में पलते, सारे रंग,
उम्र भर, रहें आप संग।।।

होली की अशेष शुभकामनाओं सहित.......

Friday, 31 July 2020

उम्मीदों के तारे

चलो के, चलने लगे हैं ये नजारे!
रोके, रुक न पाएंगे,
वो बिन तुम्हारे!

एक तुम हो के, ठहर से जाते हो,
हर बात पर,
यूँ, मुकर भी जाते हो,
ठहरेंगे, ना वो पल, बिन तुम्हारे!
रोके, रुक न पाएंगे,
सारे बे-सहारे!

यूँ तो ना बैठो, मुँह उधर फेरकर,
मन तोड़ कर,
यूँ, रंगों को छोड़ कर,
टूटे पलों से, खुद को जोड़ कर,
मर भी न पाएंगे ये,
नजर के मारे!

क्यूँ हो मलाल, बिखरे हैं गुलाल,
उस गगन पर,
क्षितिज के, कोर पर,
लम्हे हजार, खड़े उस मोड़ पर,
यूँ ही, गुजर न जाएँ,
लम्हे ये सारे!

पल-पल, संकुचित होंगे ये क्षण,
हर शाख पर,
छोड़ जाएंगे, ये निशां,
रूठो न यूँ, पलों को छोड़ कर,
यूँ ही, ढ़ल न जाए,
पलों के इशारे!

उभरेंगे, समय के, नव-संस्करण,
उस काल पर,
शायद, हम-तुम न हों!
वक्त के भाल पर, ये रंग न हो!
या, फिर हम न हों,
हमदम तुम्हारे!

चल चलें, उन्हीं पगडंडियों पर,
उसी राह पर,
बुन लें, अधूरे ये सपन,
चुन लें, वक्त के सारे संकुचन!
भर लें, फिर नयन में, 
उम्मीदों के तारे!

चलो के, चलने लगे हैं ये नजारे!
रोके, रुक न पाएंगे,
वो बिन तुम्हारे!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)