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Sunday, 7 November 2021

मध्य कहीं

कितनी बातों के मध्य, बात रही,
दिल के मध्य, कहीं!

कह भी पाता, तो क्या कह पाता!
ये सागर, कितना बह पाता!
लहर-लहर बन, खुद ही टकराता,
खुद को बिखराता,
अनकही सी, हर जज्बात रही,
दिल के मध्य, कहीं!

कितनी बातों के मध्य, बात रही,
दिल के मध्य, कहीं!

कल्पना कहें, या, कहें सपना उसे!
अब कह दें कैसे, बेगाना उसे,
अनकही वो बातें, वो ही सौगातें,
दिन और ये रातें,
संग मेरे, मेरी तन्हाई में गाते,
दिल के मध्य, कहीं!

कितनी बातों के मध्य, बात रही,
दिल के मध्य, कहीं!

अब जो ये शेष बचे हैं, संग मेरे हैं,
उन बातों में, भीगे रंग तेरे हैं,
फीके, ये लेकिन, शाम-सवेरे हैं,
वो यादों के रंग,
रहते हैं जो, अब मेरे ही संग,
दिल के मध्य, कहीं!

कितनी बातों के मध्य, बात रही,
दिल के मध्य, कहीं!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Sunday, 14 July 2019

वर्षों हुए दिल को टटोले

वर्षों हुए थे, इस दिल को टटोले.....

इक दौड़ था, इन धड़कनों में, जब शोर था,
गूँजती थी, दिल की बातें,
जगाती थी, वो कितनी ही रातें,
अब है गुमसुम सा, वो खुद बेचारा!
है वक्त का, ये खेल सारा,
बेरहम, वक्त के, पाश में जकड़ा,
भाव-शून्य है, बिन भावनाओं में डोले!

वर्षों हुए थे, इस दिल को टटोले.....

देखा तो, लगा चुप सा, वो बहुत आजकल,
जैसे, खुद में ही सिमटा,
था अपनी ही, सायों से लिपटा,
न था साथी कोई, न था कोई सहारा!
तन्हाईयों में वर्षों गुजारा,
फिरता रहा था, वो मारा-मारा,
बिन होंठ खोले, बिना कोई बात बोले!

वर्षों हुए थे, इस दिल को टटोले.....

वो रात थी, गुजरे दिनों की ही, कोई बात थी,
कई प्रश्न, उसने किए थे,
बिन बात के, हम लड़ पड़े थे,
बस कहता रहा, वो है साथी हमारा!
संग तेरे ही, बचपन गुजारा,
था तेरी यौवन का, मैं ही सहारा,
खेल, न जाने कितने, हमने संग खेले!

वर्षों हुए थे, इस दिल को टटोले.....

गिनते थे कभी, जिस दिल की, धड़कनें हम,
अनसुनी थी, वो धड़कनें,
ना ही कोई, आया उसे थामने,
टूटा था, उस दिल का, भरम सारा!
संवेदनाओं से, वो था हारा,
फिर भी, धड़कता रहा वो बेचारा,
बिन राज खोले, बिना कोई लफ्ज़ बोले!

वर्षों हुए थे, इस दिल को टटोले.....

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा

Tuesday, 13 March 2018

बातें

बस कहने को है ये दुनिया भर की बातें....

वो चंद किस्से, वो चंद मुलाकातें,
फिर न जाने......
तुम कहां और हम कहां थे,
अब दामन में आए....
ये छोटे से दिन, वो लम्बी सी रातें....

बस कहने को है ये दुनिया भर की बातें....

कुछ यादों के पल मिले थे जिन्दगी के,
वो दो चार पल......
जब बहके थे हम दिल्लगी से,
जीवंत पल वो खुशी के.....
अब गूंजते है जेहन में वो ही बातें.....

बस कहने को है ये दुनिया भर की बातें....

वो ही चंद किस्से, वो ही चंद बातें,
फिर वही मुलाकातें....
वो ही संग जीवंत धड़कनों का,
वो बहकी सी जज्बातें....
काश! फिर वही पल मुझे मिल पाते.....

बस कहने को है ये दुनिया भर की बातें....

Sunday, 14 January 2018

मुख्तसर सी बात

मुख्तसर सी वो ही बातें, सुनी कर गईं रातें.....

जब से गए तुम रहबर,
न ली सुधि मेरी,
न भेजी तूने कोई भी खबर,
हुए तुम क्यूँ बेखबर?

तन्हा सजी ये महफिल,
विरान हुई राहें,
सजल ये नैन हुए,
तुम नैन क्यूँ फेर गए?

मुख्तसर सी वो ही बातें, सुनी कर गईं रातें.....

मुख्तसर से वो पल,
कैसे बीत गए?
बस अब याद मुझे हैं आते,
वो ही शामो-शहर!

तुम संग सजी महफिल,
मखमली राहें,
चमकते से दो नैन,
सिमटते से वो दिन रैन !

मुख्तसर सी वो ही बातें, सुनी कर गईं रातें.....

संग जीने के वो वादे,
मरने की कसमें,
साँसों का साँसों से जुड़कर,
न बिछड़ने की रश्में!

न मिल पाने की तड़प,
तुमसे ही झड़प,
बीतती सी वो घड़ी,
खन खन करती ये चूड़ी!

मुख्तसर सी वो ही बातें, सुनी कर गईं रातें.....