Sunday, 14 July 2019

वर्षों हुए दिल को टटोले

वर्षों हुए थे, इस दिल को टटोले.....

इक दौड़ था, इन धड़कनों में, जब शोर था,
गूँजती थी, दिल की बातें,
जगाती थी, वो कितनी ही रातें,
अब है गुमसुम सा, वो खुद बेचारा!
है वक्त का, ये खेल सारा,
बेरहम, वक्त के, पाश में जकड़ा,
भाव-शून्य है, बिन भावनाओं में डोले!

वर्षों हुए थे, इस दिल को टटोले.....

देखा तो, लगा चुप सा, वो बहुत आजकल,
जैसे, खुद में ही सिमटा,
था अपनी ही, सायों से लिपटा,
न था साथी कोई, न था कोई सहारा!
तन्हाईयों में वर्षों गुजारा,
फिरता रहा था, वो मारा-मारा,
बिन होंठ खोले, बिना कोई बात बोले!

वर्षों हुए थे, इस दिल को टटोले.....

वो रात थी, गुजरे दिनों की ही, कोई बात थी,
कई प्रश्न, उसने किए थे,
बिन बात के, हम लड़ पड़े थे,
बस कहता रहा, वो है साथी हमारा!
संग तेरे ही, बचपन गुजारा,
था तेरी यौवन का, मैं ही सहारा,
खेल, न जाने कितने, हमने संग खेले!

वर्षों हुए थे, इस दिल को टटोले.....

गिनते थे कभी, जिस दिल की, धड़कनें हम,
अनसुनी थी, वो धड़कनें,
ना ही कोई, आया उसे थामने,
टूटा था, उस दिल का, भरम सारा!
संवेदनाओं से, वो था हारा,
फिर भी, धड़कता रहा वो बेचारा,
बिन राज खोले, बिना कोई लफ्ज़ बोले!

वर्षों हुए थे, इस दिल को टटोले.....

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा

12 comments:

  1. नमस्कार !
    आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" 15 जुलाई 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (15-07-2019) को "कुछ नया होना भी नहीं है" (चर्चा अंक- 3397) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. भावपूर्ण रचना..

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  4. बहुत सुंदर सराहनीय सृजन ।

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  5. बहुत ही सुन्दर रचना सर
    सादर

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  6. दिल ऐसा ही होता है ... चलता है बरसों बिना किसी उफ़ किये ...
    लाजवाब रचना ...

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