निहारता किसी छाँव की ओर,
देख विशाल एक वटवृक्ष,
बढ पड़े कदम उस ओर।
विश्राम कुछ क्षण का मिला,
मिली चैन की छाँव भी,
कुछ वाट वटोही मिले,
हुई कुछ मन की बात भी।
मंद हवा के चंद झौंके मिले,
कांत हृदयस्थल हुआ,
कुछ अनोखे भाव जगे,
प्रश्न अनेंकाें फिर मन में उठे।
विशाल वटवृक्ष महान कितना,
ताप धूप की खुद सहकर,
निःस्वार्थ छाँव पथिक को दे गया,
शीतल तन को कर मन हर ले गया।