वो दूर से खामोशियों की सदाएँ दे रहा कौन?
मुझको करने दे जरा आराम तू।
मुझको करने दे जरा आराम तू।
व्योम को जख्मों के नासूर दिखा रहा है कौन?
सृष्टि को करने दे जरा आराम तू।
चुप रहकर वसुधा को मन की व्यथा कह रहा कौन?
वसुधा को करने दे जरा आराम तू।
वसुधा को करने दे जरा आराम तू।
तू है भी कौन ?
तू इतना महत्वपूर्ण नहीं!
तेरी सुननेवाला यहाँ कोई नही!
सब की अपनी कथा सबकी पीड़ा!
सब अपनी व्यथा से है व्यथित!
सब की अपनी कथा सबकी पीड़ा!
सब अपनी व्यथा से है व्यथित!
सब है यहाँ थके हुए, करने दे इन्हे विश्राम तू।
अपनी खामोशी, जख्म, मन की व्यथा,
सारे गम तुझे खुद ही होंगे झेलना,
सारे गम तुझे खुद ही होंगे झेलना,
इस भव-सागर में तुझे स्वयं है तैरना।
तू ही अपनी सृष्टि का पालक,
तू ही अपनी वसुधा का रक्षक,
तु ही है स्वयम् का नियोक्ता,
तू ही खुद का विधाता, कर जरा सा काम तू।
सब है यहाँ थके हुए, करने दे इन्हे विश्राम तू।