बहुधा, गिनता रहता हूँ, पल-पल,
बस यूँ, चुपचाप!
सूनी राहों पर, वो पदचाप!
लगता है, इस पल तुम आए हो,
यूँ बैठे हो, पास!
सुखद वही, इक एहसास,
तेरा ही आभास,
और चुप-चुप,
सूनी राहों पर, वो पदचाप!
बहुधा, कहीं बहती है इक सुधा,
बस यूँ, चुपचाप!
शायद, हों उनके अनुलाप,
करती हो आलाप,
थम-थम कर,
सूनी राहों पर, वो पदचाप!
मन भरमाए, वो हर इक आहट,
हर वो, पदचाप!
दोहराए, वो ही अभिलाप,
वो ही एकालाप,
करे रुक-रुक,
सूनी राहों पर, वो पदचाप!
बहुधा, गिनता रहता हूँ, पल-पल,
बस यूँ, चुपचाप!
सूनी राहों पर, वो पदचाप!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
बहुधा, गिनता रहता हूँ, पल-पल,
ReplyDeleteबस यूँ, चुपचाप!
सूनी राहों पर, वो पदचाप!
बेहतरीन रचना...
सादर..
आनन्द की अनुभूति । त्वरित प्रतिक्रिया...वाह महोदय। हृदयतल से आभार ।
Deleteदोहराए, वो ही अभिलाप,
ReplyDeleteवो ही एकालाप,
करे रुक-रुक,
सूनी राहों पर, वो पदचाप!
उत्कृष्ट सृजन, भावनाओं से लबालब।
आनन्द की अनुभूति । त्वरित प्रतिक्रिया...वाह महोदय। हृदयतल से आभार ।
Deleteआपकी अन्य कविताओं से इतर कुछ अलग हटकर आपने लिखा है पदचाप बहुत ही खूबसूरत .लगी पढ़ने में
ReplyDeleteमानव मन की व्यथा को खूबसूरती से शब्दों के जरिया आपने उतार दिया
आनन्द की अनुभूति । आपकी त्वरित प्रतिक्रिया, ...वाह महोदया। हृदयतल से आभार ।
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (05-02-2020) को "आया ऋतुराज बसंत" (चर्चा अंक - 3602) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभारी हूँ आदरणीय मयंक जी।
Deleteबहुत सुंदर ही भावों से सजा सृजन ,सादर नमन आपको
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया।
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 10 फरवरी 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसादर आभार दी
Deleteबहुत सुंदर सृजन ! मधुमास की पदचाप सी मधुरिम रचना!
ReplyDeleteशुक्रिया अभिवादन आपका आदरणीया मीना जी।
Deleteबहुत ही सुन्दर भावपूर्ण सृजन
ReplyDeleteमन भरमाए, वो हर इक आहट,
हर वो, पदचाप!
दोहराए, वो ही अभिलाप,
वो ही एकालाप,
वाह!!!
हृदय से आभार आदरणीया सुधा देवरानी जी।
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