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Sunday, 30 January 2022

कठिन जरा

दो पल, रुक कर, कर ले बात परस्पर,
तो, मिल जाए हल!

शायद, खुल जाए मन की गांठें,
कट पाए, चैन से वो रातें,
घनीभूत कर जाते, अक्सर, जो नैन,
पल-पल, भारी वो रैन,
संताप भरे, जब काली रात ढ़ले,
तो सुन लेना, वो स्वर!

दो पल, रुक कर, कर ले बात परस्पर,
तो, मिल जाए हल!

पर, कठिन जरा, धीर रख पाना,
बहते पल का, रुक जाना,
पल की हलचल में, घुल-मिल जाना,
कोलाहल में, सुन पाना,
बदले परिवेश, थम जाए आवेग,
तो सुन लेना, वो स्वर!

दो पल, रुक कर, कर ले बात परस्पर,
तो, मिल जाए हल!

यूं दुराग्रहों से, उबर पाया कौन?
कौन, जो सुन पाये मौन!
संताप ही भर जाते, आवेशित पल,
थम जाए, जब बादल,
बरस कर, ठहर जाए, जब पल,
तो सुन लेना, वो स्वर!

दो पल, रुक कर, कर ले बात परस्पर,
तो, मिल जाए हल!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Monday, 11 April 2016

अनबुझे प्यास

है हाथों मे भरी गिलास,
पर इन अधरों पे अनबुझे से प्यास,
कुछ घूँट पी लेता हूँ मैं,
अधरों को नम कर लेता हूँ मैं,
पर अनबुझी सी फिर भी है वो प्यास।

प्यास कहाँ बुझती है इन प्यालों सें,
बढ़ जाती ये और इन प्यालों से,
प्यास छुपी पानी के अन्दर,
पानी के उपर ही तो ये प्याला तैरा है,
ये प्याला क्या अबतक अधरों पे ठहरा है?

सोचता हूँ मै भी तर जाऊँ,
इन प्यालों के संग लब को रंग डालूँ,
पहेली इस प्यास की मैं भी हल कर डालूँ,
प्यासे ये अधर क्ब तक रह पाएंगे,
जीवन की ये हाला हम पूरा पीकर जाएंगे।