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Sunday, 30 January 2022

कठिन जरा

दो पल, रुक कर, कर ले बात परस्पर,
तो, मिल जाए हल!

शायद, खुल जाए मन की गांठें,
कट पाए, चैन से वो रातें,
घनीभूत कर जाते, अक्सर, जो नैन,
पल-पल, भारी वो रैन,
संताप भरे, जब काली रात ढ़ले,
तो सुन लेना, वो स्वर!

दो पल, रुक कर, कर ले बात परस्पर,
तो, मिल जाए हल!

पर, कठिन जरा, धीर रख पाना,
बहते पल का, रुक जाना,
पल की हलचल में, घुल-मिल जाना,
कोलाहल में, सुन पाना,
बदले परिवेश, थम जाए आवेग,
तो सुन लेना, वो स्वर!

दो पल, रुक कर, कर ले बात परस्पर,
तो, मिल जाए हल!

यूं दुराग्रहों से, उबर पाया कौन?
कौन, जो सुन पाये मौन!
संताप ही भर जाते, आवेशित पल,
थम जाए, जब बादल,
बरस कर, ठहर जाए, जब पल,
तो सुन लेना, वो स्वर!

दो पल, रुक कर, कर ले बात परस्पर,
तो, मिल जाए हल!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Thursday, 16 April 2020

बिछड़न

दो साँसों की, बहती दोराहों में,
बिछड़े बहुतेरे...
बिखरे पत्तों पर, रोया कब तरुवर, 
टूटे पत्थर पर, रोया कब गिरिवर,
ये, जीवन के फेरे!

लय अपनी ही, फिर भी, चलती है साँसें,
बस, दो पल आह, हृदय भर लेता है,
फिर, राह पकड़, चल पड़ता है,
बहते नैनों मे, फिर भर जाते हैं सपने,
फिर, गैर कई, बन जाते हैं अपने!
देकर सपन सुनहरे!

दो साँसों की, बहती दोराहों में,
बिछड़े बहुतेरे...

कब टूटे तारों पर, शोक मनाता है अंबर,
बस, दो पल, ठिठक, जरा जाता है,
फिर, चंदा संग, वो इठलाता है,
फिर, लगते हैं घुलने, दो भाव परस्पर,
सँवर उठता है, संग तारों के अंबर!
कट जाते हैं अंधेरे!

दो साँसों की, बहती दोराहों में,
बिछड़े बहुतेरे...

शायद, जीवन का, आशय है, बिछड़न,
आँसू संग, हृदय जरा धुल जाता है,
पल विरह का, यूँ टल जाता है,
फिर, बनती है, जीवन की, इक धुन,
छनक उठती है, पायल रुन-झुन!
सूने हृदय बहुतेरे!

सूनी राहों पर, चल पड़ता है सहचर,
कोई राही, बन जाता है रहबर,
ये, जीवन के घेरे!
दो साँसों की, बहती दोराहों में,
बिछड़े बहुतेरे...

-पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)