Wednesday 30 December 2015

फिर तेरी यादों के बादल छाए

फिर तेरी यादों के बादल छाए,
चाहत की रिमझिम बूंदें बरसाए,
अन्तर्मन भीग चुके हैं इनमें,
मयुरों के नृत्य मन को लुभाए।

यादें सारी सजीव हो चुकी हैं,
कोलाहल इनके उभर चुके हैं,
शोर मचाते ये अन्तर्मन मे,
कोयल की हूक मन को हर जाए।

आँखें सजल हो चुकी यादों में,
होठों पर इक चुप सी लगी हैं,
चेहरे पर छा गई अजीब शांति सी,
चातक के स्वर मनविभोर कर जाए।

फिर तेरी यादों के बादल छाए। 

नववर्ष 2016 की शुभकामनाएँ

नववर्ष ले आया नवविहन,
       जागे हैं फिर नए अरमान,
              उपजी है फिर नई आशाएँ,
                    तू इन आशाओं के संग तो हो ले।

वर्ष नया है प्रारंभ नई है,
       दिवस नया है प्रहर नई है,
                हर चिन्ताओं को तज पीछे,
                       तू इक नई उड़ान तो भर ले।

निराशा के घनघोर अंधेरे,
         अब रह गए हैं पीछे तेरे,
                सामने खड़ा एक नया लक्ष्य है,
                        तू इन लक्ष्यों के संग तो हो ले।

             (हमारे समस्त पाठको को नववर्ष 2016 की 
                       असीम प्रेरक शुभकामनाएँ)

कर्मपथ का योद्धा

कर्मपथ पर चल निर्बाध अग्रसर,
नित समर बाधाओं से तू ना डर,
इस कर्मपथ का है तू अजेय योद्धा,
तू हर बाधा पर विजय कर।

विचलित तुझको न कर सकेंगे,
अंजान राहों के घनघोर अंधेरे,
निर्बाध गति से तू बढ़ निरन्तर,
 इस पथ ही समक्ष मिलेंगे सवेरे।

हिम्मत के आगे निराशा निरूत्तर,
मेहनत के आगे असफलता विफल,
प्रतिभा को कर तू इतना प्रखर,
लक्ष्य खुद हो जाए तेरा सफल।

निर्दोष का कर्मपथ

कर्म-पथ की इन राहों पर,
मानदण्डों के उच्च शिखर,
सदा स्थापित मैं करता रहा,
फिर क्युँ कर मैं दोषी हुआ?

षडयंत्र को मैं जान न पाया,
हाथ पकड़ जिसने करवाया,
अब तक उसको दोस्त सा पाया,
फिर वो कैसे निर्दोष हुआ?

ईश्वर इसकी करे समीक्षा,
दोष-निर्दोष का है वो साक्षी,
देनी हो तो दे दो मुझे दीक्षा,
दोषी मैं वो निर्दोष कैसे हुआ?

आशा का दामन

प्याले जो टूटे तो क्या,
क्षणभंगूर इन्हें टूटना ही था,
भाग्य मे लिखा है इनके,
टूटना! टूट बिखर फिर जाना क्या।

नियति पर किसका चलता,
अपनी हाथों मे कहाँ कुछ होता,
अपनी हाथों किस्मत की रेखा,
तो फिर इनका शोक मनाना क्या।

हे मानव! तू कर्म किए जा,
आशा का दामन तू रह थामे,
राह कितने भी हो कठिन,
इन राहों पे रुक जाना भी क्या।

तुम प्रीत गीत मीत

तुम प्रीत, तुम गीत, तुम मीत बन जाओ!

ऊर आलिंगन मे भर लो,
तुम नभ को मुझ संग छू लो,
हृदयाकाश पर लहरा जाओ,
तुम प्रीत बरसाओ, तुम प्रीत बरसाओ!

मन प्रांगण आ जाओ,
मन वीणा के तार छेड़ दो,
मधुर झंकार बन जाओ,
तुम हिय गीत बन जाओ, तुम हिय गीत बन जाओ!

यादों मे बस जाओ,
प्रखरता के आयाम दे जाओ,
जीवन-संध्या तक साथ निभाओ,
तुम संग मीत बन जाओ, तुम संग मीत बन जाओ।

हृदय के भाव

हृदय की भाषा गर तुम समझो,
प्रीत हमारी समझ जाओगी,
शब्दों मे कहाँ इतनी प्रखरता,
भाव जो ये तुम्हे समझा पाएगी।

हृदय में प्रबल भावना बसते हैं,
सागर कल्पना के ये रचते हैं,
प्राणों की आहूति ये लेते हैं,
नामुमकिन शब्दों मे ढ़ल पाएगी।

हृदय गर पाषाण हों तो,
भाव कहाँ तुम जान पाओगी,
प्रस्तर भावों मे बसता जीवन,
क्या तुम भी कभी समझ पाओगी?

जिनके लिए हृदय बस अंग है,
जीवन बस आवागमन है,
लाभ-हानि,धन-सम्मान निज उत्थान है,
हृदय-भाव वहाँ ये मर जाते हैं ।