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Tuesday 14 June 2016

वो तस्वीर

बनती-बिगरती बादलों में उलझी सी इक तस्वीर,

हर क्षण रंग रूप बदलती वो तस्वीर,
पल पल दृग को वो छलती,
मनमोहक भावों से वो मन को हरती,
खुली जटाओं मे बादल की कहीं गुम हो जाती,

बरसती-बिखरती बादलों में बिखरी सी वो तस्वीर,

आकाश में फिर उभरती वो तस्वीर,
बादलों संग अठखेलियाँ करती,
चंचल सी स्वच्छंद विचरती वो तस्वीर,
भावप्रवण मन को कर खुद भावविहीन हो जाती,

जीवन के कितने ही किस्से कह जाती वो तस्वीर,

निःस्वार्थ जीवन जीती वो तस्वीर,
कुछ पल जग के दुख हर लेती,
आँखों में सपने जीने के भरती वो तस्वीर,
कर्मों की राह पर चलती फना हर बार वो होती,

कर्मपथ पर चलना सिखाती उलझी सी वो तस्वीर।

Monday 22 February 2016

कर्मपथ की ओर

तू नैन पलक अभिराम देखता किस ओर,
देख रहा वो जगद्रष्टा निरंतर तेरी ओर,
इस सच्चाई से अंजान तू देखता किस ओर।

तू कठपुतली है मात्र उस द्रष्टा के हाथों की,
डोर लिए हाथों मे वो खीचता बाँह तुम्हारी,
सपनों की अंजान नगर तू देखता किस ओर।

निरंकुश बड़ा वो जिसकी हाथों में तेरी डोरी,
अंकुश रखता जीवन पर खींचता डोर तुम्हारी,
उस शक्ति से अंजान तू सोचता किस ओर।

कर्मों के पथ का तू राही नैन तेरे उस ओर,
कर्मपथ पर निश्छल बढ़ता चल कर्मों की ओर,
मिल जाएगी तेरी मंजिल उस द्रष्टा की ओर।

Sunday 24 January 2016

वो प्रगति किस काम का?

वो प्रगति किस काम का?

मानवीय मुल्यों का ह्रास हो जब,
सभ्यता संस्कृति का विनाश हो जब,
आदरभाव अनादर से हो तिरस्कृत,
जहाँ सम्मान, अपमान से हो प्रताड़ित,
अमिट कर्म की सत्यनिष्ठा घट जाए,

वो प्रगति किस काम का?

विमुख मानव कर्मपथ से हो जाए,
नाशवान वक्त को धरोहर न बन पाए,
मिट पाए न अग्यान का तिमिर अंधकार,
द्वेश-कलेश, ऊँच-नीच मन से न निकले,
जन-मानस की जीवन आशा मिट जाए,

वो प्रगति किस काम का?

विनाश क्रिया का न हो मर्दन,
विलक्षण प्रतिभा का न हो संवर्धन,
सद्गुण सद्गति संन्मार्ग न निखरे,
जन जन मे विश्वास का मंत्र न बिखरे,
मानव प्रगति के नव आयाम न छू ले।

वो प्रगति किस काम का?

Wednesday 30 December 2015

कर्मपथ का योद्धा

कर्मपथ पर चल निर्बाध अग्रसर,
नित समर बाधाओं से तू ना डर,
इस कर्मपथ का है तू अजेय योद्धा,
तू हर बाधा पर विजय कर।

विचलित तुझको न कर सकेंगे,
अंजान राहों के घनघोर अंधेरे,
निर्बाध गति से तू बढ़ निरन्तर,
 इस पथ ही समक्ष मिलेंगे सवेरे।

हिम्मत के आगे निराशा निरूत्तर,
मेहनत के आगे असफलता विफल,
प्रतिभा को कर तू इतना प्रखर,
लक्ष्य खुद हो जाए तेरा सफल।

निर्दोष का कर्मपथ

कर्म-पथ की इन राहों पर,
मानदण्डों के उच्च शिखर,
सदा स्थापित मैं करता रहा,
फिर क्युँ कर मैं दोषी हुआ?

षडयंत्र को मैं जान न पाया,
हाथ पकड़ जिसने करवाया,
अब तक उसको दोस्त सा पाया,
फिर वो कैसे निर्दोष हुआ?

ईश्वर इसकी करे समीक्षा,
दोष-निर्दोष का है वो साक्षी,
देनी हो तो दे दो मुझे दीक्षा,
दोषी मैं वो निर्दोष कैसे हुआ?