Sunday, 15 October 2017

नेपथ्य

मौन के इस गर्भ में, है सत्य को तराशता नेपथ्य।

जब मौन हो ये मंच, तो बोलता है नेपथ्य,
यूँ टूटती है खामोशी, ज्यूँ खुल रहा हो रहस्य,
गूँजती है इक आवाज, हुंकारता है सत्य,
मौन के इस गर्भ में, है सत्य को तराशता नेपथ्य।

पार क्षितिज के कहीं, प्रबल हो रहा नेपथ्य,
नजर के सामने नहीं, पर यहीं खड़ा है नेपथ्य,
गर्जनाओं के संग, वर्जनाओं में रहा नेपथ्य,
क्षितिज के मौन से, आतुर है कहने को अकथ्य।

जब सत्य हो पराश्त, असत्य की हो विजय,
चूर हो जब आकांक्षाएँ, सत्यकर्म की हो पराजय,
लड़ने को असत्य से, पुनः आएगा ये नेपथ्य,
अंततः जीतेगा सत्य ही, अजेय है सदा नेपथ्य।

मौन के इस गर्भ में, है सत्य को तराशता नेपथ्य।

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