Tuesday 13 November 2018

बिखरे शब्द

शब्दों, के ये रंग गहरे!
लेखनी से उतार, किसने पन्नों पे बिखेरे......

विचलित, कर सके ना इन्हें,
स्याह रंग के ये पहरे,
रंगों में डूबकर, ये आए हैं पन्नों पे उभर,
मोतियों से ये, अब हैं उभरे...

शब्दों, के ये रंग गहरे!
लेखनी से उतार, किसने पन्नों पे बिखेरे......

बड़े बेनूर थे, ये शब्द पहले,
भाव में गए पिरोए,
काव्य में ढलकर, आए हैं पन्नों पे उभर,
निखर गए, अब इनके चेहरे....

शब्दों, के ये रंग गहरे!
लेखनी से उतार, किसने पन्नों पे बिखेरे......

आयाम, कितने इसने भरे,
रूप कई इसने रचे,
भंगिमाएंँ लिए, ये आए पन्नों पे उभर,
करती हुई, ये नृत्य कलाएँ...

शब्दों, के ये रंग गहरे!
लेखनी से उतार, किसने पन्नों पे बिखेरे......

धूमिल भी क्या करेंगी इन्हें,
वक्त की ये ठोकरें,
विविधता लिए, ये आए पन्नों पे उभर,
सदाबहार बन, ये जो ठहरे.....

शब्दों, के ये रंग गहरे!
लेखनी से उतार, किसने पन्नों पे बिखेरे......

No comments:

Post a Comment