Sunday 4 November 2018

सर्द हवाएं

दस्तक ये कैसी, देकर गई सर्द सी हवाएं.....

कहीं जम सी गईं है कुछ बूँद,
कहीँ छाने लगी है आँखों में धुंध,
कहीं ख्वाब बुनने लगा है मन,
कहीं खामोशियां दे रही हैं सदाएं ....

दस्तक ये कैसी, देकर गई सर्द सी हवाएं.....

कोई तकता आँखों को भींचे,
कोई जगता यूहीं आँखो को मूंदे,
कोई रंग सजाने लगा है मन,
कोई बुनने लगा है कई ख्वाहिशें ....

दस्तक ये कैसी, देकर गई सर्द सी हवाएं.....

ओस बनकर गिरी बूंदें कई,
मचलने लगी ओस की बूँदें कहीं,
कुछ बूँद भिगोने लगा है मन,
कुछ बूँद भरने लगी है सर्द आहें......

दस्तक ये कैसी, देकर गई सर्द सी हवाएं.....

डोलने लगी है डाल-डाल,
कुछ बोलने लगी है डाल-डाल,
कोई गीत गाने लगा है मन,
कोई राज खोलने लगी है दिशाएं......

दस्तक ये कैसी, देकर गई सर्द सी हवाएं.....

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