तनिक छाँव, कहीं मिल जाए,
तो, जरा रुक जाऊँ!
यूँ तो, वृक्ष-विहीन इस पथ पर,
तप्त किरण के रथ पर,
तारों के उस पार, तन्हा मुझको जाना है,
इक साँस, कहीं मिल जाए,
दो पल, रुक जाऊँ!
काश ! कहीं, इक पीपल होता,
उन छाँवों में सो लेता,
पांवों के छालों को, राहत के पल देता,
इक छाँव, कहीं मिल जाए,
दो पल, रुक जाऊँ!
वो कौन यहाँ जो छू जाए मन,
कौन सुने ये धड़कन,
बंजर से वीरानों में, फलते आस कहाँ,
इक आस, कहीं मिल जाए,
दो पल, रुक जाऊँ!
पथ पर, कुछ बरगद बोने दो,
पथ प्रशस्त होने दो,
चेतना के पथ पर, पलती हो संवेदना,
इक भाव, कहीं जग जाए,
दो पल, रुक जाऊँ!
तनिक छाँव, कहीं मिल जाए,
तो, जरा रुक जाऊँ!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 12 नवंबर 2021 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
हार्दिक आभार ....
Deleteबहुत ही गहरे भावों को बयां करती बहुत ही सुंदर रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार ....
Deleteबरगद और पीपल की सी छाँव मिले जीवन सफर मिल जाये जीवन सफर में तो बात ही क्या...
ReplyDeleteपथ प्रशस्त करने दो
वाह!!!
बहुत ही सुन्दर।
हार्दिक आभार ....
Deleteसांस, छांव, आस, भाव जब एक ही प्रेमी से जुड़े हों तो जीवनरूपी सफ़र आंनदमय हो जाता है।
ReplyDeleteबहुत खूब।
हार्दिक आभार ....
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ReplyDeleteपथ पर, कुछ बरगद बोने दो,
पथ प्रशस्त होने दो,
चेतना के पथ पर, पलती हो संवेदना,
इक भाव, कहीं जग जाए,
दो पल, रुक जाऊँ!..बहुत ही सारगर्भित रचना ।
हार्दिक आभार ....
Deleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 13.11.21 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा|
ReplyDeleteधन्यवाद
बहुत शानदार सृजन।
ReplyDeleteहार्दिक आभार ....
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