बिखर सी गई, कितनी ही, परछाईंयाँ,
उलझकर, जालों में रह गई कितनी ही तस्वीरें,
कभी झांकती है, वे ही दरों-दीवार से!
अजनबी से, हो चले, किरदार कई,
गैरों में अपना सा कोई, गैर से, अपनों में कई,
महकते फूल, या, राह के वो शूल से!
ले गए जो, पल शुकून के, मेरे सारे,
वो ही कभी, कर जाते हैं विचलित, कर इशारे,
वही, छूकर गुजर जाते हैं करीब से!
पछतावा, उन्हें भी तो होगा शायद,
लिख सकी ना, जिनकी कहानी, कोई इबारत,
शिकायत क्या करे, बे-रहम वक्त से!
मिट सी गई, कितनी जिन्दगानियाँ,
लिपट कर वो फूलों में, बन गई पुरानी तस्वीरें,
झांकते है वो ही, इस दरों-दीवार से!
उभरती हैं कोई, शख्सियत अंजानी,
लिख गईं जो, इस दरों-दीवार पर इक कहानी,
पढ़ रहे सब, वो कहानी, अब गौर से!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
मिट सी गई, कितनी जिन्दगानियाँ,
ReplyDeleteलिपट कर वो फूलों में, बन गई पुरानी तस्वीरें,
झांकते है वो ही, इस दरों-दीवार से....वाह
हार्दिक आभार ....
Deleteआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल सोमवार (22-11-2021) को चर्चा मंच "म्हारी लाडेसर" (चर्चा अंक4256) पर भी होगी!
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हार्दिक आभार ....
Deleteवाह! ईतना बढिया कैसे लिख लेते हो यार!!!!! बेहद शानदार!!
ReplyDeleteहार्दिक आभार ....
DeleteBahot Acha Jankari Mila Post Se . Ncert Solutions Hindi or
ReplyDeleteAaroh Book Summary ki Subh Kamnaye
हार्दिक आभार ....
Deleteबहुत ही मार्मिक और सुंदर रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार ....
Deleteबेहतरीन रचना यथार्थ को अभिव्यक्त करती हुई
ReplyDeleteहार्दिक आभार ....
Deleteउभरती हैं कोई, शख्सियत अंजानी,
ReplyDeleteलिख गईं जो, इस दरों-दीवार पर इक कहानी,
पढ़ रहे सब, वो कहानी, अब गौर से!... वाह!बेहतरीन सर।
सादर नमस्कार
हार्दिक आभार ....
Deleteबहुत उम्दा सृजन आदरणीय ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार ....
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