Tuesday, 30 November 2021

एक झौंका

हौले से, तन को जरा छू कर,
बह चला, एक झौंका, न जाने किधर!

रह गया वो, बस इक, एहसास बनकर,
या, बना सहचर, साँस बनकर,
या, चल रहा संग, वो हर कदम पर,
एक झौंका, न जाने किधर!

कल तलक, ऐसा न था कोई एहसास,
पर अब तक, कहाँ कोई पास!
गुम कहीं, वो तोड़कर मेरा विश्वास,
एक झौंका, न जाने किधर!

रोके कब रुकी, वो खुश्बू हो या पवन,
यूं होती जुदा, ज्यूं बूंदों से घन,
मुड़ चला, झंझोरकर शाख के तन,
एक झौंका, न जाने किधर!

शंकाओं से घिरा, हृदय का, हर शिरा,
जाने कहीं झंझावातों में घिरा,
भटकता हो, सुनसान राहों में पड़ा,
एक झौंका, न जाने किधर!

हौले से, तन को जरा छू कर,
बह चला, एक झौंका, न जाने किधर!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

6 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (01-12-2021) को चर्चा मंच          "दम है तो चर्चा करा के देखो"    (चर्चा अंक-4265)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'   

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  2. प्रेम से लबरेज़ खूबसूरत नज़्म ....

    शिरा *** नाड़ी या नस
    सिरा .... किनारा / छोर ..

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  3. वाह लाजबाव सृजन, भावनाओं से ओत-प्रोत

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