सामने, मेरे खड़ा,
होता है, हर पल, एक लम्हा मेरा,
खाली या भरा!
वो बहती, सी धारा,
डगमगाए, चंचल सी पतवार सा,
आए कभी, वो सामने,
बाँहें, मेरी थामने,
कभी, मुझको झुलाए,
उसी, मझधार में,
बहा ले जाए, कहीं, एक लम्हा मेरा,
खाली या भरा!
कितना, करीब वो,
है दूर उतना, बड़ा ही, अजीब वो,
न, बाहों में, वो समाए,
न, हाथों में आए,
रहे, यादों में ढ़लकर,
इसी, अवधार में,
कहाँ ले जाए, वही, एक लम्हा मेरा,
खाली या भरा!
लम्हे, कल जो भूले,
ना वो फिर मिले, कहीं फिर गले,
कभी, वो अपना बनाए,
कभी, वो भुलाए,
करे, विस्मित ये लम्हे,
इसी, दोधार में,
भूला है, हर पल, एक लम्हा मेरा,
खाली या भरा!
सामने, मेरे खड़ा,
होता है, हर पल, एक लम्हा मेरा,
खाली या भरा!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
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