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Friday 27 November 2020

जन्मदिन- एक शुभकामना

स्निग्ध छटा सी, स्वप्निल!
मने निरंतर, जन्म-दिवस यह, 
स्वप्न सरीखी स्नेहिल!

अतुल्य स्नेह मिले,
भार्या, भाई-बन्धु, स्वजन, पुत्रजनों से,
कोटि-कोटि आशीष मिले, 
मात-पिता, गुरुजन, श्रेष्ठजनों से,
गाएं सब हिलमिल!

स्निग्ध छटा सी, स्वप्निल!
मने निरंतर, जन्म-दिवस यह, 
स्वप्न सरीखी स्नेहिल!

नवीन विहान हो,
कल्पतरू सा, जीवन के ये पल खिले,
जगमग हो, धूमिल सी संध्या,
विघ्न-विहीन, समुनन्त राह मिले,
रातें हों झिलमिल!

स्निग्ध छटा सी, स्वप्निल!
मने निरंतर, जन्म-दिवस यह, 
स्वप्न सरीखी स्नेहिल!

उम्र चढ़े, आयुष बढ़े,
खुशी की, इक छाँव, घनेरी हो हासिल,
मान बढ़े, नित् सम्मान बढ़े,
धन-धान्य बढ़े, आप शतायु बनें,
आए ना मुश्किल!

स्निग्ध छटा सी, स्वप्निल!
मने निरंतर, जन्म-दिवस यह, 
स्वप्न सरीखी स्नेहिल!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)
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HAPPY BIRTHDAY

Friday 12 February 2016

अवसाद में जन्मदिन

क्षण क्षण उम्र बढ़ रही है अवसान को,
 यह जन्मदिन जन्म दे रही अवसाद को।

अब तो प्रहर सांझ की ढलने को आई,
 मुझसे मीलों पीछे छूटी है मेरी तरुणाई।

मनाऊँ कैसे जन्मदिन इस उम्र में अब,
तार वीणा के सुर में बजते नही है अब।

मृदंग के स्वर कानों में गूंजते नहीं अब,
तानपूरे की उम्र ही ढल गई मानो अब।

केक मिठाई तो बन चुके है मेरे दुश्मन,
जन्मदिन मनाने का अब रहा नहीं मन।

Friday 22 January 2016

स्नेहिल जन्मदिन

बन गया जन्मदिन मेरा यह स्वप्न सा स्नेहिल,
स्नेह दिया माँ, भाईबन्धु,पत्नी, बच्चों ने मिल,
आशीष की भेंट मिली स्निगध छटा स्वप्निल,
वृष्टि शुभकामनाओं की हुई मुझको हासिल।

यूँ तो हर पल घट जाते हैं जीवन के कुछ क्षण,
इस लघु होते जीवन में जी गया मैं कुछ क्षण,
माता व पत्नी ने शीष नवाया ईश्वर के सम्मुख,
आस्था संगिनी की भाव जगाता सत्यवान सम।

मैं भाग्यवान कितना जन्मदिन मना पाता हूँ,
आशीष बड़ो से लेकर छोटों को प्यार देता हूँ,
नववस्त्र का उपहार मिलता मिष्ठान्न खाता हूँ,
जीवन चक्र मे जन्मदिन प्रेम का बिता पाता हूँ।

Friday 25 December 2015

जन्मदिन की बधाई

25th December
मेरे प्यारे विनय भैया को जनमदिन की ढेर सारी शुभकामनाएँ
Wish you Bhaiya a happy birthday…

ये जनम दिन है वृहद, कोई साधारण नही,
मन में जिसके अपार करुणा, दया व प्यार,
वही सर्वव्यापी मसीहा, पैदा हुआ था आज,
प्रीत की सीख देकर जो, रचता रहता नव-संसार।

वाणी मे जिसकी, घुलती है सरलता-मधुरता,
प्राणों मे जिसके, बसता है अनंत प्यार,
शब्दों मे जिसकी, ढलती है मृदु कोमलता,
हृदय में जिसके, बसती हैं मृदुलता अपार।

जनम लिया था उसने, देने जग को उपहार,
खुद पीड़ा मे रहकर भी, हरता औरों के दुख,
कष्टों को समेट स्वयम् में, करता रहता परोपकार,
जनम लिया है उसी परम ने, उन्हें सादर नमस्कार।