उफ, यह डरी सहमी सी रात, तेज ढ़ले भी तो कैसे..,.....?
उफ, ये रात ढलती है कितनी धीरे-धीरे,
कितने ही मर्म अपने गर्त अंधेरे साए में समेटे,
दर्द की चिंगारी में खुद ही जल-जलके,
तड़पी है यह रात अपनों से ठोकर खा-खा के,
उफ, यह बेचारी रात, तेज ढ़ले भी तो कैसे..,.....?
पड़े हैं कितने ही छाले इनके पैरों में,
दिन की चकाचौंध उजियारों मे चल-चल के,
लूटे हैं चैन अपनों नें ही इन रातों के,
सपन सलोने भी अब आते हैं बहके-बहके,
उफ, यह तन्हा सी रात, तेज ढ़ले भी तो कैसे..,.....?
सुर्ख रातों की गहरी तम सी तन्हाई,
भाग्य की लकीरों सी इनकी हाथों मे गहराई,
सन्नाटों की चीरती आवाज सी लहराई,
आँखे रातों की भय, व्यथा, घबराहट से भर आई,
उफ, अंधेरी स्याह सी रात, तेज ढ़ले भी तो कैसे..,.....?
उफ, ये रात ढलती है कितनी धीरे-धीरे,
कितने ही मर्म अपने गर्त अंधेरे साए में समेटे,
दर्द की चिंगारी में खुद ही जल-जलके,
तड़पी है यह रात अपनों से ठोकर खा-खा के,
उफ, यह बेचारी रात, तेज ढ़ले भी तो कैसे..,.....?
पड़े हैं कितने ही छाले इनके पैरों में,
दिन की चकाचौंध उजियारों मे चल-चल के,
लूटे हैं चैन अपनों नें ही इन रातों के,
सपन सलोने भी अब आते हैं बहके-बहके,
उफ, यह तन्हा सी रात, तेज ढ़ले भी तो कैसे..,.....?
सुर्ख रातों की गहरी तम सी तन्हाई,
भाग्य की लकीरों सी इनकी हाथों मे गहराई,
सन्नाटों की चीरती आवाज सी लहराई,
आँखे रातों की भय, व्यथा, घबराहट से भर आई,
उफ, अंधेरी स्याह सी रात, तेज ढ़ले भी तो कैसे..,.....?