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Sunday 10 April 2016

लब्जों मे बयाँ

लब्जों में बयाँ जो हम कर न सके,
अल्फाज वो ही दिलों में दबी रह गई,
वो फसाना बहुत खूबसूरत सा था,
बात गुजरे जमाने की अब वो हो गई।

वो अल्हड़ सी उनकी नादानियाँ,
शब्दों में लिखी जैसे अनकही कहानियाँ,
लब्जों पे रुकी लहर सी कहीं,
अब गुनगुनाती हुई कोई गजल बन गईं।

जुल्फ खुल के कभी लहराए थे,
खुली गेसुओं में कुछ धुंधले से साये भी थे,
सीरत-ए-बयाँ ये लब्ज कर न सके,
वो लहराते से मंजर अब यादों में बस गईं।

छलके नैनों में अब अक्श एक ही,
उन खुले नैनों में उभरी है इक तस्वीर वही,
नीर नैनों के लब्जों पे बह न सके,
वो छलकते से नैन अब जाम में ढ़ल गई।

Monday 14 March 2016

मुझे रोक लेना मेरे वश में नहीं

तुम ही तुम हर पल एहसास सी,
ज़िक्र क्यों हर पल तेरा मेरी यादों में,
आसान नहीं ये समझ पाना,
मान लो तुम इसे खुदा कि मर्जी,
मेरी यादों को रोक लेना मेरे वश में नहीं।

तूम इक एहसास सी बनकर मुझमें,
फुरक़त-ए-एहसास अनोखी तेरी बातों में,
बंधन के वे स्वर भूल जाना मुमकिन नहीं,
रोक लूं खुद को मैं कैसे तुम्हें चाहने से,
मेरी चाहत को रोक लेना मेरे वश में नहीं ।

इसे इत्तफ़ाक़ कहो या फिर मेरी नादानी.....

बड़े बेनूर से पड़े थे मेरे एहसास,
रौनक ए एहसास आपके आने से आई,
खोया हूँ उस तसव्वुर-ए-मदहोशी में,
मुमकिन नहीं अब होश में आना,
हाँ ....! हाँ, कतई मुमकिन नहीं......!
मेरी मदहोशी को रोक लेना मेरे वश में नहीं ।