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Tuesday 9 August 2016

नेह ये कैसा?

नेह ये कैसा?

मासूम सा वो जिद्दी पतंगा,
कोमल पंख लिए लौ पर उड़ता फिरता,
नेह दिल में लिए दिए से कहता,
पनाह मे अपनी ले ले, जीवन के कुछ पल देता जा......

निरंकुश वो दिया है कैसा?
कहता पतंगे से, तू जिद क्युँ करता,
जीवन नहीं, यहाँ मौत है मिलता,
जीवन तू अपना दे दे, जीवन के कुछ पल लेता जा.....

धुन का पक्का पर वो पतंगा,
रंग सुनहरे अपनी निर्दयी दिए को देता,
प्रेम में ही जीता, प्रेम में ही मरता,
आहूति जीवन की देकर, जीवन के कुछ पल जीता....

दिया रोता तब अपने किए पर,
भभककर जल उठता अब रो रोकर,
बुझ जाता पतंगे संग जल जलकर,
कारिख पतंगो को देकर, निशानी नेह की उनको देता...

नेह ये कैसा?

Monday 22 February 2016

कर्मपथ की ओर

तू नैन पलक अभिराम देखता किस ओर,
देख रहा वो जगद्रष्टा निरंतर तेरी ओर,
इस सच्चाई से अंजान तू देखता किस ओर।

तू कठपुतली है मात्र उस द्रष्टा के हाथों की,
डोर लिए हाथों मे वो खीचता बाँह तुम्हारी,
सपनों की अंजान नगर तू देखता किस ओर।

निरंकुश बड़ा वो जिसकी हाथों में तेरी डोरी,
अंकुश रखता जीवन पर खींचता डोर तुम्हारी,
उस शक्ति से अंजान तू सोचता किस ओर।

कर्मों के पथ का तू राही नैन तेरे उस ओर,
कर्मपथ पर निश्छल बढ़ता चल कर्मों की ओर,
मिल जाएगी तेरी मंजिल उस द्रष्टा की ओर।

Thursday 31 December 2015

समय और अनुबंध

अनुबंधों में हम बंध सकते हैे,
समय नही अनुबंधों में बंधता,
समय निरंकुश क्या बंध पाएगा,
अनुबंधों की परिधियां तोड़ता,
गंतव्य की ओर निकल जाएगा।

मानव विवश है समय सीमा में,
सुख-दुख दोनों समय के हाथों,
अनुबंध की शर्तें विवश समय मे,
समय सत्ता जो समझ पाएगा,
अनुबंधो के पार वही जा पाएगा।