जीवन, उतने ही दिन मेरा!
जितने दिन, इन पलकों में बसे सवेरा!
आएंगे-जाएंगे, जीवन के ये लम्हे,
हम! लौट कहाँ पाएंगे?
जब तक हैं! हम उनकी यादों में हैं,
कल, विस्मृत हो जाएंगे!
रोज छाएगी, ये सुबह की लाली,
ये ना, हमें बुलाएंगी!
सांझ किरण, उपवन की हरियाली
ये भी, हमको भुलाएंगी!
पलकों में भर लूँ, मूंदने से पहले,
कैद कर लूँ, सपने!
जोर लूँ, कुछ गांठें टूटने से पहले,
कल, फिर ना हो अपने!
जीवन, उतने ही दिन मेरा!
जितने दिन, इन पलकों में बसे सवेरा!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)