हां, समाहित हो, यूं मुझमें ही वर्षों....
प्रफुल्लित करते रहे, मुझे, उन फूलों सा स्पर्श,
आकर्षित करते रहे, सरसों सा फर्श,
यूं, कटे संग-संग 32 वर्ष,
ज्यूं, संग चले, तुम कल परसों!
हां, समाहित हो, यूं मुझमें ही वर्षों....
तेरे ही कारण, बादल बन आए ये सावन,
रंगों का सम्मोहन, भीगे मौसम के आकर्षण,
खिलते, अगहन में पीले-पीले सरसों,
भीगे, फागुन की आहट,
चाहत के, ये अनगिन रंग वर्षों!
हां, समाहित हो, यूं मुझमें ही वर्षों....
यूं इन रेखाओं में, मुकम्मल सी तुम हो,
जितना पाया, शायद, अब तक वो कम हो!
शेष बचा जो, वो हर पल हो विशेष,
चल, बुनें फिर से सरसों,
संग, उसी राह, चले फिर वर्षो!
हां, समाहित हो, यूं मुझमें ही वर्षों....

Celebrating 32nd years of togetherness at Chennai on 24.11.2025

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