Tuesday 30 March 2021

अंतःमुखी

कुछ कहना था उनसे, पर कह ना पाया...

खुद को, सिकतों पर उकेर आया,
पर, नाहक ही, लिखना था,
मन की बातें, सिकतों को, क्या कहना था?
उनको तो, बस उड़ना था,
मन मेरा, अंतःमुखी,
थोड़ा, था दुखी,
भरोसा, उन सिकतों पर कर आया,
खुद, जिनका ना सरमाया!

कुछ कहना था उनसे, पर कह ना पाया...

कुछ अनकही, पुरवैय्यों संग बही,
लेकिन, अलसाई थी पुरवाई,
शायद, पुरवैय्यों को, कुछ उनसे कहना था!
उनको ही, संग बहना था,
मैं, इक मूक-दर्शक,
वहीं रहा खड़ा,
उम्मीदें, उन पुरवैय्यों पर कर आया,
जिसने, खुद ही भरमाया!

कुछ कहना था उनसे, पर कह ना पाया...

मैं तीर खड़ा,लहरों से क्या कहता!
खुद जिसमें, इतनी चंचलता,
अपनी ही धुन, अनसुन जिनको रहना था,
व्यग्र, सागर संग बहना था,
मैं, इक एकाकी सा,
एकाकी ही रहा,
सागर की, उन लहरों को पढ़ आया,
बेचैन, उन्हें भी मैंने पाया!

कुछ कहना था उनसे, पर कह ना पाया...

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

30 comments:

  1. पुरुषोत्तम जी ,
    आपने मन के भावों को बखूबी कहा है ...क्षमा सहित .... सिकतों का अर्थ मुझे स्पष्ट नहीं हो रहा ....यदि आप नमी या गीलेपन को कह रहे तब भी सिक्त होना चाहिए था ... हो सकता है कहीं बोली का शब्द हो ... जानने की जिज्ञासा है ...

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    1. सिकता का अर्थ है...बालू।
      आदरणीया उत्साहवर्धन हेतु आभारी हूँ। बहुत-बहुत धन्यवाद।

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    2. बहुत शुक्रिया पुरुषोत्तम जी । बेहतरीन रचना ।

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (31-03-2021) को  "होली अब हो ली हुई"  (चर्चा अंक-4022)   पर भी होगी। 
    --   
    मित्रों! कुछ वर्षों से ब्लॉगों का संक्रमणकाल चल रहा है। परन्तु प्रसन्नता की बात यह है कि ब्लॉग अब भी लिखे जा रहे हैं और नये ब्लॉगों का सृजन भी हो रहा है।आप अन्य सामाजिक साइटों के अतिरिक्त दिल खोलकर दूसरों के ब्लॉगों पर भी अपनी टिप्पणी दीजिए। जिससे कि ब्लॉगों को जीवित रखा जा सके। चर्चा मंच का उद्देश्य उन ब्लॉगों को भी महत्व देना है जो टिप्पणियों के लिए तरसते रहते हैं क्योंकि उनका प्रसारण कहीं हो भी नहीं रहा है। ऐसे में चर्चा मंच विगत बारह वर्षों से अपने धर्म को निभा रहा है। 
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --  

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  3. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 30 मार्च 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. मैं, इक एकाकी सा,
    एकाकी ही रहा,
    सागर की, उन लहरों को पढ़ आया,
    बेचैन, उन्हें भी मैंने पाया!

    कुछ कहना था उनसे, पर कह ना पाया...., बहुत सुंदर रचना

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    1. आभारी हूँ आदरणीया शकुन्तला जी। बहुत-बहुत धन्यवाद। ।।

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    1. आदरणीय हिमकर श्याम जी, स्वागत है आपका मेरे ब्लॉग पर। बहुत-बहुत धन्यवाद।

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  6. मैं, इक एकाकी सा,
    एकाकी ही रहा,
    सागर की, उन लहरों को पढ़ आया,
    बेचैन, उन्हें भी मैंने पाया!

    कुछ कहना था उनसे, पर कह ना पाया...
    बेहद खूबसूरत हृदयस्पर्शी भावों से सृजित सृजन ।

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  7. बहुत सुंदर आदरणीय सर।
    बेहद खूबसूरत पंक्तियाँ,अभिव्यक्ति ने शब्दों का सुंदर रूप लिया है। आपकी लेखनी को बारंबार प्रणाम 🙏

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    1. आभारी हूँ आँचल जी। बहुत-बहुत धन्यवाद।

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  8. वाह स‍िन्हा साहब...मैं, इक एकाकी सा,
    एकाकी ही रहा,
    सागर की, उन लहरों को पढ़ आया,
    बेचैन, उन्हें भी मैंने पाया!...मन को छूती रचना ..अद्भुत है...एक एक शब्द

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    1. शुक्रिया आभार आदरणीय अलकनंदा सर। बहुत-बहुत धन्यवाद।

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  9. बहुत खूबसूरत लिखा है , हार्दिक बधाई हो

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  10. बहुत सुंदर रचना ,गहन एहसास समेटे।

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  11. मैं, इक एकाकी सा,
    एकाकी ही रहा,
    सागर की, उन लहरों को पढ़ आया,
    बेचैन, उन्हें भी मैंने पाया!,,,,,,।बहुत लाजवाब रचना, बहुत सुंदर भावों से सजी हुई ।आदरणीय शुभकामनाएँ,

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    1. विनम्र आभार आदरणीया मधुलिका जी। शुभ प्रभात

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  12. अत:मुखी मन की कथा और व्यथा का अति सूक्ष्मता से चित्रण एक अलग ही भाव निसृत कर रहा है । बहुत बहुत सुंदर अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई ।

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    1. विनम्र आभार आदरणीया अमृता तन्मय जी।

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  13. कुछ कहना था उनसे, पर कह ना पाया...
    बहुत कुछ कहता है ये वाक्य ,आदरणीय कविवर | दुनिया में एसा कोई व्यक्ति नहीं होगा जो इस काश से ना गुजरता हो | कई अनकही बातें हमेशा के लिए अंतस में घर कर जाती हैं और इसी पछतावे में उम्र गुजर जाती है कि काश ---
    कुछ कहना था उनसे, पर कह ना पाया...--
    कह ही दिया होता | मन के सहज उदगार शब्दों में ढालना कोई आपसे सीखे | सादर

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    1. आपकी व्याख्यात्मक टिप्पणी हेतु
      विनम्र आभार, बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया रेणु जी।

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