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Friday 19 February 2016

ये बेचारा दिल

ये अपना दिल न होता बेचारा,
गर जिन्दगी की राहों मे न आपसे मिला होता,
फलसफे चुन चुन कर रुशवाईयों के,
कागजों पे न आज लिख रहा होता।

ये अपना दिल न होता बेचारा,
गर सादगी पे आपकी ये न मर मिटा होता,
समुन्दर की बार बार उठती लहरों से,
पता आपका न आज पूछ रहा होता।

ये अपना दिल न होता बेचारा,
गर रूह की गहराईयों में न आपको बिठाया होता,
चूर चूर हो चुके इस दिल के हर टुकड़े से,
नाम आपका ही न आ रहा होता।

Sunday 7 February 2016

पन्ने जिन्दगी के

पन्ने पलटता गया मैं फिर से जिन्दगी के,
बिखरी पड़ी यादों को फिर चाहा समेटना,
कुछ पन्ने साफ सुथरे से, पर बिखरे मिले,
कुछ याद धुले हुए से वहीं पड़े मिले,
चंद फलसफे जिन्दगी के फिर से दोहराए गए,
जख्म जो भर चुके थे कभी, अब फिर से हरे हुए।

पन्ने जिन्दगी के मैं फिर भी पलटता गया,
हरे हुए जख्म की वजह मैं ढ़ूंढ़ता रहा,
नादानियों पें अपनों की हँसी सी आती रही,
बदजुबानियाँ कभी मन की शाख झुलाती रही,
अपनों जैसे दिख रहे दुश्मनों से भी बुरे लगे,
साफ मन को किया अब न किसी से कोई गिला।

पन्ने चंद और मैं यूँ ही पलटता गया,
कभी नाज खुद के किए पर हुआ,
तो कभी शर्मशार खुद ही जिन्दगी हुआ,
आईना जिन्दगी की पन्ने दिखलाती रही,
सच झूठ की असलियत मुझको बताती रही,
जख्म भर चुके थे सब, अब शांत मेरा चित्त हुआ।

अक्सर, पन्ने जिन्दगी के मैं पलटता युँ ही रहा!