अबकी जो बिछड़े, तो ख्वाबों में ही मिलेंगे कहीं..
शाख पर लिपटती बेलें यूँ ही कुछ कह गई,
ढलती रही सांझ ख्यालों में ही कहीं,
कोई भीनी सी हवा तन को छूकर थी गई,
दस्तक दबे पांव देकर गया था कोई,
ये सरसराहट सी हवाओं मे अब कैसी?
क्या है ये भरम? या है मेरा ख्वाब ये कोई?
आ मिल कहीं, सौदा ख्वाबों का हम करें यूँ ही ....
जिक्र करें, ये मन के भरम कब तक धरें..
मिल कर कहीं, हम यूँ ही बैठा करें,
कह लें वही, अबतक जो हम कह न सके,
मन ही मन यूँ तन्हा हम क्यूँ जलें?
कुछ खैरों खबर लें, मन की सबर लें,
ख्वाब से ख्वाब का, यूँ तुझ संग सौदा करें.....
यूँ ही लौट आएंगी, बँद होठों पे चहकती हँसी....
देखो ना! उस सांझ हलचल सी क्या हुई?
बेनूर सी रुत हुई, ये घड़ी, ये शाम भी,
ये सदाएँ मेरी, गुनगुना न फिर सकी कभी,
हृदय के तार, फिर न झंकृत हुई कभी,
ढलती रही हर शाम, फिर यूँ ही बेरंग सी,
अब जो गई शाम, फिर लौट न आएंगे कभी.....
अबकी जो बिछड़े, तो ख्वाबों में ही मिलेंगे कहीं.....
शाख पर लिपटती बेलें यूँ ही कुछ कह गई,
ढलती रही सांझ ख्यालों में ही कहीं,
कोई भीनी सी हवा तन को छूकर थी गई,
दस्तक दबे पांव देकर गया था कोई,
ये सरसराहट सी हवाओं मे अब कैसी?
क्या है ये भरम? या है मेरा ख्वाब ये कोई?
आ मिल कहीं, सौदा ख्वाबों का हम करें यूँ ही ....
जिक्र करें, ये मन के भरम कब तक धरें..
मिल कर कहीं, हम यूँ ही बैठा करें,
कह लें वही, अबतक जो हम कह न सके,
मन ही मन यूँ तन्हा हम क्यूँ जलें?
कुछ खैरों खबर लें, मन की सबर लें,
ख्वाब से ख्वाब का, यूँ तुझ संग सौदा करें.....
यूँ ही लौट आएंगी, बँद होठों पे चहकती हँसी....
देखो ना! उस सांझ हलचल सी क्या हुई?
बेनूर सी रुत हुई, ये घड़ी, ये शाम भी,
ये सदाएँ मेरी, गुनगुना न फिर सकी कभी,
हृदय के तार, फिर न झंकृत हुई कभी,
ढलती रही हर शाम, फिर यूँ ही बेरंग सी,
अब जो गई शाम, फिर लौट न आएंगे कभी.....
अबकी जो बिछड़े, तो ख्वाबों में ही मिलेंगे कहीं.....