और कितने, राज गहरे खोलोगे तुम!
और कितना, बोलोगे तुम!
सदियों तलक, चुप रहे कल तक,
ज्यूँ, बेजुबां हो कोई,
इक ठहरी नदी, कहीं हो, खोई-खोई,
पर, हो चले आज कितने,
चंचल से तुम!
और कितने, राज गहरे खोलोगे तुम!
और कितना, बोलोगे तुम!
रहा मैं, किनारों पे खड़ा, चुपचाप,
बह चली थी वो धारा,
बेखबर, जाने किसका था, वो ईशारा,
बस बह चले थे, प्रवाह में,
निर्झर से तुम!
और कितने, राज गहरे खोलोगे तुम!
और कितना, बोलोगे तुम!
बज उठा, कंदराओं में संगीत सा,
गा उठी, सूनी घाटियाँ,
चह-चहा उठी, लचक कर, डालियाँ,
छेड़ डाले, अबकी तार सारे,
सितार के तुम!
और कितने, राज गहरे खोलोगे तुम!
और कितना, बोलोगे तुम!
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