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Wednesday, 12 February 2020

बेज़ुबान पंछी

सेवते अण्डे,
घटाटोप बादल,
सोचते पंछी!

दुष्ट प्रवृत्ति,
निर्दयी बहेलिया,
सहमी जान!

झूलते डाल,
टूटते वो घोंसले,
गिरते अण्डे!

तेज पवन,
निस्तेज होता मन,
चुप बेजुबां!

कैसा ये ज़हां,
बिखरा वो आशियां,
खुश अहेरी!

करे आखेट,
निर्दयी वो आखेटक,
मारते पंछी!

झूलते डाल,
बिखरे से घोंसले,
मृत वे चूजे!

रोते आकाश,
पछताते पवन,
कर अनर्थ!

चुप सी हवा,
ठहरा वो बादल,
निढ़ाल पंछी!

वही मानव,
बन बैठा दानव,
करे उत्सव!

थमा मौसम,
निढाल सा चातक,
ताकते नभ!

मूक सी बोली,
बेज़ुबान वो बात,
भीतरी घात!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)
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हाइकु: जापान के काव्य-जगत में, हाइकु को स्थान दिलाने वाले जापानी कवि बाशो ‘हाइकु’ को परिभाषित करते हुए कहते हैं कि  “एक अच्छा हाइकु क्षण की अभिव्यक्ति होते हुए भी किसी शास्वत जीवन-सत्य की अभिव्यक्ति होता है|”

हाइकु मूल रूप से एक अतुकांत कविता है और हाइकु के मान्य विषय प्रकृति–चित्रण और दार्शनिक-सोच हैं। परन्तु हिन्दी हाइकु में अनेकानेक विविध प्रयोग हुए हैं।

हाइकु में तीन चरण या पद होते हैं। पहले चरण में 5 वर्ण, दूसरे में 7 वर्ण एवं तीसरे में 5 वर्ण होते हैं। इस तरह तीनों चरणों में कुल (5+7+5) 17 वर्ण (स्वर या स्वर युक्त व्यंजन) होते हैं। स्वर रहित व्यंजन (हलन्त्) की गिनती नहीं की जाती, जैसे विस्तार में स् की गणना नही की जाएगी । इस शब्द में वि, ता और र की ही गणना की जाएगी । इस गणना में लघु/दीर्घ मात्राएँ समान रूप से गिनी जाती हैं, अर्थात् विस्तार में 1+1+1=3 वर्ण ही माने जाएँगे।

इन पंक्तियों की विशेषता होती है कि ये अपने आप में स्वतंत्र होती हैं परन्तु आखिरी अक्षर तक पहुँचते ही पाठक के सामने एक पूरी तस्वीर प्रस्तुत होती है, मन में गहन भाव का बोध होता है|