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Sunday, 7 February 2016

जीवन की पोथी

लिखते है हर दिन हम एक-एक पन्ना जिंदगी का,
कुछ न कुछ हर रोज,  एक नई कलम हाथों में ले,
अपने कर्मों की गाथा से, भरते हैं जीवन की पोथी,
ये पन्ने इबारत जीवन की, कुछ खट्टी कुछ मीठी।

ये पन्ने सामान्य नही हैं,जीवन की परछाई है ये तेरी,
थोड़ा बहुत ही सही, झलक इसमे व्यक्तित्व की तेरी,
कर्मों का लेखा जोखा इसमे, भावुकता इसमें है तेरी,
ये पन्ने कल जब पढ़े जाएंगे, पहचान बनेगी ये तेरी। 

हश्र क्या होगा इन पन्नों का, रह रह सोचता प्राणी!
क्या इन पन्नों में छपेगी, मेरे सार्थकता की कहानी?
पोथी बनकर महाग्रन्थ, क्या चढ़ेगी जन की जुबानी!
पन्ने जीवन के तेरे, संभल कर चल तू राह अंजानी।