Monday 24 May 2021

संबल

एकाकी, मैं कब था!
कुछ यादें थी,
यूँ, मैं था,
ज्यूँ, संग मेरे मेरा रब था!

अनवरत, चला वक्त का रथ,
रूठ चले कितने, अपने, छूट चले कितने,
उनकी ही, मीठी यादों के पल,
उभर आए, बन कर संबल,
यूँ, मैं था,
ज्यूँ, संग मेरे मेरा रब था!

बन बिखरे, आँखों के मोती,
बिन मौसम, इक बारिश, यूँ रही भिगोती,
भींगे से हम, भीगे यादों के क्षण,
हर क्षण, बरसा वो सावन,
यूँ, मैं था,
ज्यूँ, संग मेरे मेरा रब था!

रिक्तताओं के मध्य, मरुवन,
व्यस्तताओं के मध्य, पुकारता वो दामन,
समेटता, गहराता वो आलिंगन, 
हर पल, आबद्ध रहा मन,
यूँ, मैं था,
ज्यूँ, संग मेरे मेरा रब था!

एकाकी, मैं कब था!
कुछ यादें थी,
यूँ, मैं था,
ज्यूँ, संग मेरे मेरा रब था!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

25 comments:

  1. जय मां हाटेशवरी.......
    आपने लिखा....
    हमने पढ़ा......
    हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें.....
    इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना.......
    दिनांक 25/05/2021 को.....
    पांच लिंकों का आनंद पर.....
    लिंक की जा रही है......
    आप भी इस चर्चा में......
    सादर आमंतरित है.....
    धन्यवाद।

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  2. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (24 -5-21) को "अब दया करो प्रभु सृष्टि पर" (चर्चा अंक 4076) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    कामिनी सिन्हा

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  3. अनवरत, चला वक्त का रथ,
    रूठ चले कितने, अपने, छूट चले कितने,
    उनकी ही, मीठी यादों के पल,
    उभर आए, बन कर संबल,
    यूँ, मैं था,
    ज्यूँ, संग मेरे मेरा रब था... क्या खूब लिखा आपने

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  4. एकाकी, मैं कब था!
    कुछ यादें थी,
    यूँ, मैं था,
    ज्यूँ, संग मेरे मेरा रब था!

    गहरी रचना।

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  5. वाह!पुरुषोत्तम जी ,क्या बात है !एकाकी मैं कब था ,
    कुछ यादें थी ,यूँ मैं था .......बेहतरीन !

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  6. एकाकी, मैं कब था!
    कुछ यादें थी,
    यूँ, मैं था,
    ज्यूँ, संग मेरे मेरा रब था! सच मे ऐसी सोच वाले व्यक्ति एकाकी हो ही नहीं सकता। बहुत सुंदर रचना, पुरुषोत्तम भाई।

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  7. बन बिखरे, आँखों के मोती,
    बिन मौसम, इक बारिश, यूँ रही भिगोती,
    भींगे से हम, भीगे यादों के क्षण,
    हर क्षण, बरसा वो सावन,
    यूँ, मैं था,
    ज्यूँ, संग मेरे मेरा रब था!..खूबसूरत एहसासों का सृजन ।

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  8. एकाकी, मैं कब था!
    कुछ यादें थी,
    यूँ, मैं था,
    ज्यूँ, संग मेरे मेरा रब था!
    सही कहा एकाकी तो रब ने किसी को नहीं छोड़ा हैं हमेशा वही हमारे साथ है...
    बहुत ही लाजवाब भावपूर्ण सृजन।

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  9. यूँ, मैं था,
    ज्यूँ, संग मेरे मेरा रब था!
    आत्मा सो परमात्मा!!!!
    खुद से बड़ा खुद का कोई सम्बल कहां!!
    गहन अनुभूतियों से सजी रचना है 👌👌👌🙏💐💐

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  10. वाह! बहुत सुंदर पुरुषोत्तम जी !
    हर बार की तरह सुंदर सरस भाव सृजन।

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