हे शिव!
अर्पित है, दुविधा मेरी,
समर्पित, मन की शंका मेरी,
बस खुलवा दे, मेरे भ्रम की गठरी,
उलझन, सुलझ जाए थोड़ी,
जोड़ लूँ, मैं ये अँजुरी!
हे शिव!
क्या, सचमुच भगवान,
मांगते हैं, दूध-दही पकवान,
होने को प्रसन्न, चाहते हैं द्रव्य-दान,
लेते हैं, जीवों का बलिदान,
हूँ भ्रमित, मैं अन्जान!
हे शिव!
भीतर, पूजते वो पत्थर,
बाहर, रौंदते जो मानव स्वर,
निकलूं कैसे, मैं इस भ्रम से बाहर,
पूजा की, उन सीढ़ियों पर,
क्यूँ विलखते हैं ईश्वर?
हे शिव!
जीवन ये, स्वार्थ-प्रवण,
मानव ही, मानव के दुश्मन,
शायद, हतप्रभ चुप हैं यूँ भगवन,
घनेरे कितने, स्वार्थ के वन,
भटक रहा, मानव मन!
हे शिव!
पाप-पुण्य, सी दुनियाँ,
ये, सत्य-असत्य की गलियाँ,
धर्म-अधर्म की, तैरती कश्तियाँ,
बहती, नफरत की आँधियां,
भ्रम, हवाओं में यहाँ!
हे शिव!
अर्पित है, दुविधा मेरी,
समर्पित, मन की शंका मेरी,
बस खुलवा दे, मेरे भ्रम की गठरी,
उलझन, सुलझ जाए थोड़ी,
जोड़ लूँ, मैं ये अँजुरी!
हे शिव!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
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