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Thursday, 26 May 2016

खुशफहमी

इन वादियों में इस शाम को फिर आज सुरमई कर लूँ.....

गुनगुनाती हुई इन फिजाओं में,
फिर भूला सा कोई गजल मैं भी कह लूँ,
कचनार कहीं फिर घुली हवाओं में,
अपनी गजलों में कुछ ताजगी मैं भर लूँ,
नकाब रुखसार से हटे जब आपकी,
उन लरजते होठों पे शबनमी गीत कोई मैं लिख दूँ।

ये वादियाँ हैं खुशफहमी की,
फिर भरम कोई प्रीत का मन में रख लूँ,
गजलों में ढ़लती उन फिजाँओं संग,
उनकी वजूद का कुछ वहम मैं संग कर लूँ,
वो चंपई रुखसार दिखे जब आपकी,
ढ़लती हुई इस शाम को गीतों से मैं सुरमई कर दूँ।

सज गई हैं अब कतारें फूलों की,
रंग कोई प्यार का फूलों से मैं भी माँग लूँ,
ऐ मन, गीत नया फिर कोई तू सुना,
उन गीतों में साज दिलों के मैं भी छेड़ लूँ,
गिर के पलकें फिर उठे जब आपकी,
फूलों के वो रंग उन पलकों में प्यार से मैं भर दूँ।

ढ़लती हुई इस शाम को फिर आज सुरमई कर लूँ.....

Thursday, 4 February 2016

दो नैन

चंद अल्फाज निकल गए तारीफ में आपकी,
 मचले हैं शबनमी लहर सुर्ख होठों पे आपकी,
शुरूर बन के छा गई नूर-ए-चांदनी हर तरफ,
बदल गई है रुत की मस्त रवानियाँ हर तरफ।

शर्मों हया का परदा उतरा है चाँदनी की नूर से,
बेखबर मचल रहे यूँ जज्बात दिलों की तीर से,
चाहुँ चुरा लूँ चँद शबनम बंद होठों से आपकी,
देखता रहूँ झुकी पलकों में ढ़ली हया आपकी।

आँखें दे गईं हैं अब पयाम जिन्दगी की नूर के,
कजरारे नैन बरबस तक रहे आस में हुजूर के,
तारीफ करता रहूँ मैं इन दो नैनों की आपकी,
उम्र मै गुजार दूँ तकते इन दो नैनों मे आपकी।