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Thursday, 8 November 2018

स्नेह तुम्हारा

बरस बीते, बीते अनगिनत पल कितने ही तेरे संग,
सदियाँ बीती, मौसम बदले........
अनदेखा सा कुछ अनवरत पाया है तुमसे,
हाँ ! बस ! वो स्नेह ही है.....
बदला नही वो आज भी, बस बदला है स्नेह का रंग।

कभी चेहरे की शिकन से झलकता,
कभी नैनों की कोर से छलकता,
कभी मन की तड़प और संताप बन उभरता,
सुख में हँसी, दुख में विलाप करता,
मौसम बदले! पौध स्नेह का सदैव ही दिखा इक रंग ।

छूकर या फिर दूर ही रहकर!
अन्तर्मन के घेरे में मूक सायों सी सिमटकर,
हवाओं में इक एहसास सा बिखरकर,
साँसों मे खुश्बू सी बन कर,
स्नेह का आँचल लिए, सदा ही दिखती हो तुम संग।

अमूल्य, अनमोल है यह स्नेह तेरा,
दूँ तुझको मैं बदले में क्या? 
सब कुछ है तेरा, मेरा कुछ भी ना अब मेरा,
समर्पित कण-कण हूँ मैं तुझको,
भाव समर्पण के ना बदलेंगे, बदलते मौसम के संग।

सौदा है यह, नेह के लेन-देन का,
तुम नेह निभाने में हो माहिर,
स्नेह लुटा, वृक्ष विशाल बने तुम नेह का,
देती है घनी छाया जो हरपल,
अक्षुण्ह स्नेह ये तेरा, कभी बदले ना मौसम के संग।