Wednesday, 23 September 2020

भ्रम में हम हैं

जागी सी आँखों में, बिखरा सा इक स्वप्न है,
वो सच था? या इक भ्रम में हम हैं!

क्या वो, महज इक मिथ्या था?
सत्य नहीं, तो वो क्या था?
पूर्णाभास, इक एहसास देकर वो गुजरा था,
बोए थे उसने, गहरे जीवन का आभास,
कल्पित सी, उस गहराई में,
कंपित है जीवन मेरा,
ये सच है? 
या इक भ्रम में हम हैं!

जागी सी आँखों में, बिखरा सा इक स्वप्न है,
वो सच था? या इक भ्रम में हम हैं!

सो, उठता हूँ, बस चल पड़ता हूँ!
चुनता हूँ, उन स्वप्नों को!
बुनता हूँ, टूटे-बिखरे से कंपित हर क्षण को,
भ्रम के बादल में, बुन लेता हूँ आकाश,
शायद, विस्मित इस क्षण में,
अंकित है, जीवन मेरा,
ये सच है? 
या इक भ्रम में हम हैं!

जागी सी आँखों में, बिखरा सा इक स्वप्न है,
वो सच था? या इक भ्रम में हम हैं!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

18 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 23 सितंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 24.9.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
    धन्यवाद
    दिलबागसिंह विर्क

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  3. जी बहुत बढ़िया। अभिनंदन आपका।

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  4. सुन्दर प्रस्तुति.

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  5. वाकई एक भ्रम में ही जी रहे हैं हम, अब तो विज्ञान भी यही कहता है.
    सम्भवतः आप पूर्णाभास और आभास लिखना चाहते थे,

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  6. वाह बहुत सुंदर कविता

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