Sunday, 27 May 2018

क्या है ख्वाब ये

ये हकीकत है कोई, या है बस इक ख्वाब ये?

इक धुंधलाती सी परछाईं,
मद्धम सी गूंजती कोई मधुर आवाज,
छुन-छुन पायलों की धुन,
चूड़ियों की चनकती खनखनाहट,
करीब से छूकर गुजरती कोई पवन,
मदहोश करती वही खुश्बू...
है ये कोई वहम या फिर कोई जादू!
या है बस इक ख्वाब ये?

कही उठ रहा है धुंध कोई,
जैसे बिखेरा है किसी ने आँचल कहीं,
या नेह का है ये निमंत्रण,
या मन को लुभा रहा है कोई युं ही!
बज रही हो जैसे कोई अनसुनी सरगम,
गुनगुनाने लगी हो हवाएँ...
है ये कोई भरम या कहीं अपना कोई!
या है बस इक ख्वाब ये?

कोई चुपके से कहे, ऐ सुन!
मद्धिम सी बजने लगी फिर वही धुन,
मैं मूकद्रष्टा सा खोलूं नयन,
रोककर साँसें गिनूं दिल की धड़कन,
भटकता फिरूं मैं, जैसे आवारा बादल,
लिए पहलू में आँचल कोई...
है ये कोई वहम या है हमारा कोई!
या है बस इक ख्वाब ये?

तो फिर ये इशारे हैं किसके,
आसमान पर ये सारे तारे हैं किसके,
भीगा सा है क्यूं ये गगन,
चटक कर खिली है क्युं ये कलियां,
फूलों के अंग-अंग क्यूं निखरे है आज?
कोयल ने क्यूं छेड़ी है तान....
है ये कोई भरम या है कोई न कोई!
या है बस इक ख्वाब ये?

ये हकीकत है कोई, या है बस इक ख्वाब ये?

Saturday, 26 May 2018

दर्द-ए-दयार

दर्द-ए-हजार, कोई दिले दयार रख गया...

थी इक खुशी की मुझको तलाश,
दर्द इक पल का भी, मुझको गँवारा न था,
यूं ही आँखों से कोई बेकरार कर गया,
बस ढ़ूंढ़ता ही रहा, मैं वो करार,
दर्द का आलम, वो ही बेसुमार दे गया....

दर्द-ए-हजार, कोई दिले दयार रख गया...

लिए जाऊं कहाँ, मैं ये दर्दे दयार,
हर तरफ वही पीर, हर राह वो ही बयार,
गुजारिशें मैं दर्द से बार-बार कर गया,
कर गया मिन्नतें वो दरकिनार,
इन आँखों में, वो बस इन्तजार दे गया....

दर्द-ए-हजार, कोई दिले दयार रख गया...

हर शै में है पीर, दर्द है बेशुमार,
इस दर्द से परे, कहीं न था मेरा दयार,
तो दर्द क्यूं वो मेरे दयार रख गया,
हर लम्हा है दर्द का कतार,
फिर क्यूं, इक नया दर्द यार दे गया....

दर्द-ए-हजार, कोई दिले दयार रख गया...

Thursday, 24 May 2018

कहीं यूं ही

ऐ मेघ, किसी देश कहीं तू चलता चल यूं ही!

जा सावन ले आ, जा पर्वत से टकरा,
या बन जा घटा, नभ पर लहरा,
तेरे चलने में ही तेरा यौवन है,
यह यौवन तेरा कितना मनभावन है,
निष्प्राणों में प्राण तू फूंक यूं ही......

ऐ मेघ, किसी देश कहीं तू चलता चल यूं ही!

जा सागर से मिल, जा तू बूंदे भर ला,
प्यासी है ये नदियां, दो घूंट पिला,
सूखे झरनों को नव यौवन दे,
तप्त शिलाओं को सिक्त बूंदों से सहला,
बहता चल तू मौजों के साथ यूं ही....

ऐ मेघ, किसी देश कहीं तू चलता चल यूं ही!

या घटा घनघोर बन, या चित बहला,
कलियों से मिल, ये फूल खिला,
खेतों की इन गलियो से मिल,
सूखे फसलों को ये रस यौवन के पिला,
जीवन में जान जरा तू फूंक यूं ही.....

ऐ मेघ, किसी देश कहीं तू चलता चल यूं ही!

या बाहों में सिमट, आ मन को सहला,
सजनी की आँखों में ख्वाब जगा,
आँचल बन मन पर लहरा,
निराशा हर, आशा के कोई फूल खिला,
आँखों में सपने तू देता जा यूं ही....

ऐ मेघ, किसी देश कहीं तू चलता चल यूं ही!

Wednesday, 23 May 2018

झ॔झावात

धुन में घुलते ये साज, बेसुरे हुए हैं क्यूं आज?

जीवन के ये झंझावात,
पल पल आँहों में, घिसते ये हालात,
अन्तर्मन में पिसती कोई बात,
धुन से भटकते ये साज.....
ऐसे में मन को कोई छू जाए,
दर्द दिलों के कम जाए,
धुन ऐसी ही कोई, सुना दे ना तू आज!

धुन में घुलते ये साज, बेसुरे हुए हैं क्यूं आज?

कोई अपनों से हो नाराज,
मीठे से रिश्तों में भर जाए खटास,
नदारद हो मिश्री की मिठास,
ये मन रहता हो उदास.....
ऐसे में गीत मधुर कोई गाए,
स्वर लहरी सी लहराए,
सुर ऐसी ही कोई, सुना दे ना तू आज!

धुन में घुलते ये साज, बेसुरे हुए हैं क्यूं आज?

सुरविहीन से ये अंधड़,
दिलों के अन्दर उतार गए ये खंजर,
सुख चैन कहाँ अब पल भर,
भावविहीन ये झंझावात....
ऐसे में स्पर्श कोई कर जाए,
भाव-प्रवण कर जाए,
गीत ऐसा ही कोई, सुना दे ना तू आज!

धुन में घुलते ये साज, बेसुरे हुए हैं क्यूं आज?

चिंतित करते ये लम्हात,
ये जीवन के भयंकर से झंझावात,
ना ही सर पर हो कोई हाथ,
बेकाबू से हों हालात......
ऐसे में हाथ कोई रख जाए,
रौशन राह दिखा जाए,
राग कोई ऐसी ही, सुना दे ना तू आज!

धुन में घुलते ये साज, बेसुरे हुए हैं क्यूं आज?

Sunday, 20 May 2018

स्वार्थ

शायद, मैं तुझमें अपना ही स्वार्थ देखता हूं....

तेरी मोहक सी मुस्काहट में,
अपने चाहत की आहट सुनता हूं
तेरी अलसाए पलकों में,
सलोने जीवन के सपने बुनता हूं,
उलझता हूं गेसूओं में तेरे,
बाहों में जब भी तेरे होता हूं,
जी लेता हूं मैं तुझ संग,
यूं सपने जीवन के संजोता हूं,
हाँ तब भी, मैं अपना स्वार्थ ही देखता हूं!

कब पल-भर को भी मैं नि:स्वार्थ जीता हूं!

भीगे तेरे आँसू में
दामन भी मेरे,
छलनी मेरा हृदय भी
हुआ दर्द से तेरे,
डोर जीवन की मेरी
है साँसों में तेरे,
मेरी डोलती नैया
है हांथों में तेरे,
यही तो हैं स्वार्थ....
मै वश में जिनके रहता हूं...
फिर, कैसे हुआ मैं निःस्वार्थ...
हाँ इनमें भी, मैं अपना स्वार्थ ही देखता हूं!

कब पल-भर को भी, मैं नि:स्वार्थ जीता हूं!

कोई छोटी सी बात भी मेरी,
न बनती है बिन तेरे,
है तुझ पे ही पूर्णतः निर्भर,
मेरे जीवन के फेरे,
संतति को मेरी...
शरण मिली कोख में ही तेरे,
जीवन की इन राहों पर
इक पग भी
न चल पाया मैं बिन तेरे,
फिर, कहां हुआ मैं निःस्वार्थ,
हाँ अब भी, मैं अपना स्वार्थ ही देखता हूं!

कब पल-भर को भी मैं नि:स्वार्थ जीता हूं!

सब कहते हैं इसको ही प्यार....
पर, इसमें मैं अपने
स्वार्थ का संसार देखता हूं ....
बिल्कुल, मैं तुझमें अपना ही स्वार्थ देखता हूं....

(स्वार्थवश...., पत्नी को सप्रेम समर्पित)

Thursday, 17 May 2018

कोलाहल

वो चुप था कितना, जीवन की इस कोलाहल में!

सागर कितने ही, उसकी आँचल में,
बादल कितने ही, उस कंटक से जंगल में,
हैं बूंदे कितनी ही, उस काले बादल में,
फिर क्यूं ये विचलन, ये संशय पल-पल में!

वो चुप था कितना, शोर भरे इस कोलाहल में!

खामोश रहा वो, सागर की तट पर,
चुप्पी तोड़ती, उन लहरों की दस्तक पर,
हाहाकार मचाती, उनकी आहट पर,
सहज-सौम्य, सागर की अकुलाहट पर!

वो चुप था कितना, लहरों की इस कोलाहल में!

सुलगते जंगल की, इस दावानल में,
कलकल बहते, दरिया की इस हलचल में,
दहकते आग सी, इस मरुस्थल में,
पल-पल पग-पग डसती, इस दलदल में!

वो चुप था कितना, कितने ही ऐसे कोलाहल में!

था इक कण मात्र, वो इस सॄष्टि में,
ये कोलाहल कुछ ना थे उसकी दृष्टि में,
भीगा आपादमस्तक, वो अतिवृष्टि में,
चुपचाप रहा वो, इस जीवन की संपुष्टि में!

वो चुप था कितना, सृष्टि की इस कोलाहल में!

Tuesday, 15 May 2018

विसाल-ए-यार

क्या दूं मै मिसाले यार? वो तो है बेमिसाल!

यूं बुन रहा हूं मैं ये ख्याल,
कभी तो मिल जाएगा विसाल-ए-यार,
होश में न रह पाएंगे हम,
वो कर जाएंगे हमें बेख्याल!

क्या दूं मै मिसाले यार? वो तो है बेमिसाल!

है आफताब सा उनका नूर,
ढ़ला संगमरमर में है वो दीदार-ए-यार,
है उनसे ही तो ये रौशनी,
उनकी ही रंग से है ये गुलाल!

क्या दूं मै मिसाले यार? वो तो है बेमिसाल!

है बला की उनकी सादगी,
है जेहन मे बस वो ही ख्याल-ए-यार,
झुकी हुई सी वो निगाह,
यूं ही जीना न कर दे मुहाल!

क्या दूं मै मिसाले यार? वो तो है बेमिसाल!

यूं ही बुनता रहा मैं ख्याल,
यूं ही सपनों में बस विसाल-ए-यार,
शुकून उन्ही की वस्ल में,
है उन्ही में खोए हम बेख्याल!

क्या दूं मै मिसाले यार? वो तो है बेमिसाल!

बेख्याल

यूं ही बेख्याल थे हम, किसी के ख्याल में,
कई ख्वाब देख डाले, हम यूं ही ख्वाब में........

वो रंग है या नूर है,
जो चढता ही जाए, ये वो सुरूर है,
हाँ, वो कुछ तो जरूर है!
यूं ही हमने देख डाले,
हाँ, कई रंग ख्वाब में!

यूं ही बेख्याल थे हम, किसी के ख्याल मे...

ये कैसे मैं भूल जाऊँ?
है बस ख्वाब वो, ये कैसे मान जाऊँ?
हाँ, कहीं वो मुझसे दूर है!
यूं ही उसने भेज डाले,
हाँ, कई खत ख्वाब में!

यूं ही बेख्याल थे हम, किसी के ख्याल मे...

है वो चेहरा या है शबनम!
हुए बेख्याल, बस यही सोचकर हम!
हाँ, वो कोई रंग बेमिसाल है!
यूं ही हमने रंग डाले,
हाँ, जिन्दगी सवाल में!

यूं ही बेख्याल थे हम, किसी के ख्याल में,
कई ख्वाब देख डाले, हम यूं ही ख्वाब में........

नए नग्मे

नग्में नए गुनगुनाओ, मेरी पनाहो में आओ....

तुम हर पल यूं ही मुस्कुराओ,
तराने नए तुम बनाओ,
नए जिन्दगी की नई ताल पर,
झूमो यूं, मस्ती में आओ....

नग्में नए गुनगुनाओ, मेरी पनाहो में आओ....

तुम बहारों के दामन में खेलो,
कलियो सी खिलखिलाओ,
चटक रंग की नई फूल सी तुम,
आंगन को मेरे सजाओ....

नग्में नए गुनगुनाओ, मेरी पनाहो में आओ....

तुम वापस न जाने को आओ,
लौटकर फिर न जाओ,
कह दो जरा, के मेरे हो तुम,
सपनों को मेरे सजाओ....

नग्में नए गुनगुनाओ, मेरी पनाहो में आओ....

Sunday, 13 May 2018

माँ कहती थी

मेरी माँ, मुझसे न जाने क्या-क्या कहती थी....

जब पाँवो पे झुलाती थी,
तो माँ कहती थी....

घुघुआ मनेरिया, अरवा चौर के ढेरिया,
ढेरिया उड़ियायल जाय,
कुतवा रगिदले जाय,
देखिहँ रे बुढिया,
हमर बेटा जाय छौ, हड़िया बर्तन फोरै ल,
नया घर लेम्हि कि पुराना घर?
नया घर उठे, पुराना घर गिरे!

जब संग खेला करती थी,
तो माँ कहती थी....

अत्ता पत्ता, बेटा के पाँच ठो बिटवा,
एगो गाय में, एगो भैंस में,
एगो लकड़ी में, एगो बकड़ी में,
एगो छकड़ी में.....
चौर चूड़ा खैले जाय, गुदुर गांय लगैले जाय...
और संग-संग हँस पड़ती थी माँ!

जब दूध पिलाती थी,
तो बड़े प्यार से माँ कहती थी....

चंदा मामा, आरे आबा बारे आबा,
नदिया किनारे आबा,
सोना के कटोरिया में, दूध-भात लेले आबा,
बऊआ के मुहमा में घुटूक....

जब रोटी खिलाती थी,
तो माँ कहती थी....

देखो देखो, वो कौआ रोटी लेकर भागा....
फिर निवाला मुह में रख देती,
कभी-कभी ये भी कहती कि....
थाली में खाना मत छोड़ना,
कहीं किसी दिन नाराज खाना, तुझे न छोड़ दे

जब सर में तेल लगाती थी,
तो माँ कहती थी....

तेलिया चुप चुप, माथा करे लुप लुप,
तेलवा चुअत जाय,
बेलवा माथा फूटत जाय.....

जब सुलाया करती थी,
तो माँ कहती थी.....

पलकों पे आ जा री निंदिया....
ओ नींदिया रानी तू ले चल वहाँ,
सपनों मे संग तेरे खेलेगा मेरा मुन्ना जहाँ.....

जब सपने में मैं राक्षस से डर जाता था,
तब सोने से पहले हिम्मत देकर
इक मंत्र पढने को समझाती
और रोज ही सिखाती माँ कहती थी......

हिमालस्य उत्तरे देशे, कर्कटी नाम राक्षसी,
तस्य स्मरण मात्रेण, दुः स्वप्नः न जायते.......
फिर क्या था, मै बलशाली बन जाता था,
सपने में उस राक्षस से लड़ जाता था....

जब पूजा करवाती थी,
तो माँ कहती थी.....

नमामि शमीशां निर्वाण रूपम.....
विद्या दीजिए, बल दीजिए, बुद्धि दीजिए....
हाथ फेरकर सर पर,
बलाएँ सब अपने सर लेती थी,
मन ही मन कुछ बुदबुदाती थी फिर माँ...

मेरी माँ मुझसे न जाने क्या-क्या कहती थी....
समझाती थी यदा कदा....
मीठी-मीठी बातों से बचना जरा,
दुनियाँ के लोगों में है जादू भरा.....

मातृ-दिवस (13 मई) की शुभकामनाओं सहित