उम्र की क्या खता, वक्त तू ही बता!
तेरी ही सिलवटों से, झांकता,
भटकता, इक राह तेरी,
ढूंढता, धुंधली आईनों में,
खोया सा पता!
उम्र की क्या खता, वक्त तू ही बता!
इक धार तेरी, सब दी बिसार,
बहाए ले चली, बयार,
उन्हीं सुनसान, वादियों में,
ढूंढ़ू तेरा पता!
उम्र की क्या खता, वक्त तू ही बता!
लगे, अब आईना भी बेगाना,
ढ़ले, सांझिल आंगना,
दरकते कांच जैसे स्वप्न में,
भूल बैठा पता!
उम्र की क्या खता, वक्त तू ही बता!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteBahut hi sunder,,
ReplyDeleteसुंदर कविता।
ReplyDelete