मुखर मनःस्थिति, मनःश्रुधार, मौन अभ्यावेदन!
ढूंढता है तू क्या ऐ मेरे व्याकुल मन?
चपल हुए हैं क्यूँ, तेरे ये कंपकपाते से चरण!
है मौन सा कैसा तेरा ये अभ्यावेदन?
तू है निश्छल, तू है कितना निष्काम!
जीवन है इक छल, पीता जा तू छल के जाम!
प्रखर जरा मौन कर, तू पाएगा आराम!
मौन अभ्यर्थी ही पाता विष का प्याला!
कटु वचन, प्रताड़ना, नित् अश्रुपूरित निवाला!
मौन वृत्ति ने ही तुझको संकट में डाला!
भूगर्भा तू नहीं, तू है इक निश्छल मन,
तड़़पेगा तू हरपल, करके बस मौन अभ्यावेदन!
स्वर वाणी को दे, कर प्रखर अभ्यावेदन!
अग्निकुण्ड सा है यह, जीवन का पथ!
उसपार तुझे है जाना चढ़कर इस ज्वाला के रथ!
तू कर अभ्यावेदन, लेकर ईश की शपथ!