Friday, 15 September 2017

छाए हैं दृग पर


छाए हैं अब दृग पर, वो अतुल मिलन के रम्य क्षण!

वो मिल रहा पयोधर,
आकुल हो पयोनिधि से क्षितिज पर,
रमणीक क्षणप्रभा आ उभरी है इक लकीर बन।

छाए हैं अब दृग पर, वो अतुल मिलन के रम्य क्षण!

वो झुक रहा वारिधर,
युँ आकुल हो प्रेमवश नीरनिधि पर,
ज्युँ चूम रहा जलधर को प्रेमरत व्याकुल महीधर।

छाए हैं अब दृग पर, वो अतुल मिलन के रम्य क्षण!

अति रम्य यह छटा,
बिखरे हैं मन की अम्बक पर,
खिल उठे हैं सरोवर में नैनों के असंख्य मनोहर।

छाए हैं अब दृग पर, वो अतुल मिलन के रम्य क्षण!

2 comments:

  1. वो झुक रहा वारिधर,
    युँ आकुल हो प्रेमवश नीरनिधि पर,
    ज्युँ चूम रहा जलधर को प्रेमरत व्याकुल महीधर।
    छाए हैं अब दृग पर, वो अतुल मिलन के रम्य क्षण!''
    बहुत ही सरस मनमोहक शब्दावली ये युक्त -- बीती यादों को दोहराती -- अनुरागी मन की टीस!!!!!!इतनी कलात्मक शैली मन को बरबस आह्लादित कर देती है !!!! बहुत बधाई और शुभकामना आदरणीय पुरुषोत्तम जी |

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