यदा कदा जाता हूँ मैं यादों के उन बीहड़ में....
यत्र तत्र झाड़ झंखर, राहों में धूल कंकड़,
कंटीली झाड़ियों से ढ़की, वीरान सी वो बीहड़,
वृक्ष विशाल से उग आए हैं अब वहाँ,
शेष है कुछ तस्वीरें, बसी है जिनसे वो जहाँ,
कुछ बातें कर लेता हूँ मैं उनसे वहाँ...
यदा कदा जाता हूँ मैं यादों के उन बीहड़ में....
कुछ भी तो अब नहीं बचा, उस बीहड़ में,
हर शै में समय की जंग, खुद समय भी है दंग,
हैरान हूँ मैं भी, समय ये क्या कर गया?
खुद ही रचयिता, खुद ही विनाशक वो बना,
समय से बातें कर लेता हूँ मैं वहाँ....
यदा कदा जाता हूँ मैं यादों के उन बीहड़ में....
घने वृक्ष, चीखते झींगुर, अंतहीन बीहड़,
चीखते फड़फड़ाते, अनमनस्क से चमगादड़,
कुछ ज़िन्दगियाँ अब भी रहती है वहाँ,
दम घोंटती हवाओं में, पैबन्द हैं साँसें जहाँ,
जिन्दगी को ढ़ूँढ़ने जाता हूँ मैं वहाँ...
यदा कदा जाता हूँ मैं यादों के उन बीहड़ में....
ऐ वक्त, ऐ निर्मम समय, ये कैसा बीहड़!
रचता ही है तो रच, बीहड़ साँसों की लय पर,
वो बीहड़! तरन्नुम हवाओं में हों जहाँ,
तैरते हों शुकून, मन की तलैय्या पर जहाँ,
मन कहता रहे, तू ले चल मोहे वहाँ....
यदा कदा जाता हूँ मैं यादों के उन बीहड़ में....
यत्र तत्र झाड़ झंखर, राहों में धूल कंकड़,
कंटीली झाड़ियों से ढ़की, वीरान सी वो बीहड़,
वृक्ष विशाल से उग आए हैं अब वहाँ,
शेष है कुछ तस्वीरें, बसी है जिनसे वो जहाँ,
कुछ बातें कर लेता हूँ मैं उनसे वहाँ...
यदा कदा जाता हूँ मैं यादों के उन बीहड़ में....
कुछ भी तो अब नहीं बचा, उस बीहड़ में,
हर शै में समय की जंग, खुद समय भी है दंग,
हैरान हूँ मैं भी, समय ये क्या कर गया?
खुद ही रचयिता, खुद ही विनाशक वो बना,
समय से बातें कर लेता हूँ मैं वहाँ....
यदा कदा जाता हूँ मैं यादों के उन बीहड़ में....
घने वृक्ष, चीखते झींगुर, अंतहीन बीहड़,
चीखते फड़फड़ाते, अनमनस्क से चमगादड़,
कुछ ज़िन्दगियाँ अब भी रहती है वहाँ,
दम घोंटती हवाओं में, पैबन्द हैं साँसें जहाँ,
जिन्दगी को ढ़ूँढ़ने जाता हूँ मैं वहाँ...
यदा कदा जाता हूँ मैं यादों के उन बीहड़ में....
ऐ वक्त, ऐ निर्मम समय, ये कैसा बीहड़!
रचता ही है तो रच, बीहड़ साँसों की लय पर,
वो बीहड़! तरन्नुम हवाओं में हों जहाँ,
तैरते हों शुकून, मन की तलैय्या पर जहाँ,
मन कहता रहे, तू ले चल मोहे वहाँ....
यदा कदा जाता हूँ मैं यादों के उन बीहड़ में....