Friday 25 December 2015

क्षण-क्षण मधु-स्मृतियाँ

धुँधली रेखायें, खोई मधु-स्मृतियों के क्षण की,
चमक उठें हैं फिर, विस्मृतियों के काले घन में,

घनघोर झंझावात सी उठती विस्मृतियों की,
प्रलय उन्माद लिए, उर मानस कम्पन में,

जाग उठी नींद असंख्य सोए क्षणों की,
हृदय प्राण डूब रहे, अब धीमी स्पन्दन में,

गहरी शिशिर-निशा में गूंजा जीवन का संगीत,
जीवन प्रात् चाहे फिर, अन्तहीन लय कण-कण में,

जीवन पार मृत्यु रेखा निश्चित और अटल सी,
प्राण अधीर प्रतिपल चाहे मधुर विस्मृति प्रांगण मे,

बीते क्षणों के स्पंदन में जीवन-मरण परस्पर साम्य,
मिले जीवन सौन्दर्य, मर्त्य दर्शन, प्रतिपल हर क्षण में,

धुँधली रेखाओं की उन खोई मधु-स्मृतियों संग,
कर सकूं मृत्यु के प्रति, प्राणों का आभार क्षण-क्षण में!

जन्मदिन की बधाई

25th December
मेरे प्यारे विनय भैया को जनमदिन की ढेर सारी शुभकामनाएँ
Wish you Bhaiya a happy birthday…

ये जनम दिन है वृहद, कोई साधारण नही,
मन में जिसके अपार करुणा, दया व प्यार,
वही सर्वव्यापी मसीहा, पैदा हुआ था आज,
प्रीत की सीख देकर जो, रचता रहता नव-संसार।

वाणी मे जिसकी, घुलती है सरलता-मधुरता,
प्राणों मे जिसके, बसता है अनंत प्यार,
शब्दों मे जिसकी, ढलती है मृदु कोमलता,
हृदय में जिसके, बसती हैं मृदुलता अपार।

जनम लिया था उसने, देने जग को उपहार,
खुद पीड़ा मे रहकर भी, हरता औरों के दुख,
कष्टों को समेट स्वयम् में, करता रहता परोपकार,
जनम लिया है उसी परम ने, उन्हें सादर नमस्कार।

Thursday 24 December 2015

ओस के बूंदों की प्रीत

आखिर प्रीत जो ठहरी ...बूंदों से!!
इन ओस की
अल्प बूंदों से भी,
बुझ सकती है मेरी प्यास,
जरा ठहरो तो सही।

पर वो तो ओस हैं,
वो भी एक बूंद,
क्षणिक हैं इनका जीवन,
क्या बुझा पाएगी ये प्यास?
सम्पूर्ण धरा है इसकी प्यासी।

ओस की अल्प बूँद,
तुम्हारा लक्ष्य महान,
अपना हश्र जानते हुए भी
बिछ जाती हो हर रात
धरा के 
कण-कण पर,
इसकी प्यास बुझाने,
आखिर प्रीत जो ठहरी ...!!

तलाश

विस्तृत सा आकाश है,
फिर भी तन्हाईयों का एहसास है,
इस घनी सी बस्ती मे,
अपने घर की तलाश है।

दीप जलाने वाले सौ,
फिर भी बुझती लौ सी आस है,
जाने पहचाने रिश्तों में,
बस जिन्दगी की तलाश है।

ज्जबातों से सूखे आँसुओं में,
डूबती अब आस है,
समुंदर के गीले आँसुओं से,
बुझने वाली ये प्यास है।

लाखों चेहरो हैं पहचाने से,
पर जाने कहां खोया है खुद को,
के आईने को भी अब,
अपने अक्स की तलाश है।

तू चुपके से सुन इस पल की धुन

सुबह की पुरवाई मे घुली तेरी महक,
मेरी आँखों के गीले कोरों से,
मखमली ख्वाबों को चुनकर,
शाम ढ़़ले तन्हाई के एहसासों कों तजकर,
तू चुपके से सुन, इस पल की धुन,
दो दिलों की धड़कनें, मैं और तुम।

चांदनी सम तुम, शांत बादल सम मैं,
तुम बिखरो मुझपर मृदु चांदनी सम,
छा जाऊँ मैं तुमपर विस्तृत आकाश बन,
तुम हो जाओ चंचल निर्मल नदी सी,
सागर सा विस्तृत पूर्ण हो जाऊँ मैं।

नीलाभवर्ण बादलों में छिपी इन बूँदों सम,
वो सुरमयी ख़्वाब हैं, जो देखे हैं हमने तुम संग
अब कणों नें फिर छेड़े है वही धुन, 
चहुँ ओर है शांत सा कोलाहल,
कोयल भी है चुप सुनने को फिर से वही धुन,
तू चुपके से सुन, इस पल की धुन,
दो दिलों की धड़कनें, मैं और तुम।

तुम मुझमें हो

देखो ना,
तुम मुझमे हो,
जैसे धड़कनें है हृदय के अंदर,
इन्हें रखने को जीवित,

पर क्या धड़कन को भी है,
किसी हृदय की जरूरत,
धड़कते रहने को,
अपने अस्तित्व को जिन्दा रहने को,

तुम मुझमे हो,
इससे यह कहां साबित होता है कि,
मैं भी तुझमे हूँ,
मेरी जरूरत भी है तुम्हें,
उतनी ही संजीदगी से।

एहसास जिन्दा हों तो,
हमें एक दूसरे की जरूरत है,
दुनियाँ भर की तमाम यादें समाहित हैं,
इन चंद पंक्तियों में...................
तुम भी हो इसमें कही न कही।

Wednesday 23 December 2015

तुम बनो प्रेरणा जग हेतु

ओ मानव ! 
निराशा तज कर तुम आशावान बनो,
कर्म पथ पर नित प्रगतिशील रहो, 
मलयनील के उत्तुंग शिखरों तक,
तुम पहुचो निर्बाध गति से,
कनक शिखर पर तेरे ,
सूरज भी आएं शीष झुकाने,
कर्म पथ पर चलकर,
तुम बनो प्रेरणा जग हेतु,
असंख्य हाथ उठे तेरी इशारों पर,
असंख्य शीष उठकर तेरी राह निहारे।

जिन्दगी के आईने प्रखर हो इतने,
प्रबुद्ध बनकर चमको तुम इतने,
कि बीते कल के घनघोर अंधेरे,
रौशनी में शरमाकर धुल जाएं इनमें,
आशा का नव संचार हो,
हो फिर नया सवेरा,
हर पल जीवन में हो उजियारा,
निष्कंटक पथ प्रशस्त हों प्रगति के,
कोटि-कोटि दीप जलकर तेरी राह सवाँरे।

मेरी अन्तरआत्मा की आवाज

किसी दोस्त ने टिप्पणी की,

ज़िन्दगी ख़ुद ब ख़ुद एक आइना है जो बयां करती है
बीते हुए कल की जो अंधेरी रात की तरह है
अौर सुबह का इन्तज़ार करती है आने वाले खुबसूरत पल की,

दूसरे बुजूर्ग दोस्त ने कहा.....

न आए लबों पे तो कागज़ पे लिख दिया जाए..
किसी खयाल को मायूस क्यों किया जाए__

मेरी अन्तरआत्मा ने जवाब दिया....

कागजों के लिखे तो मिट जाते हैं,
                  ख्याल वो जो दिलों पे लिखे जाएं,
महसूस हो जो जन्मो-जन्मों तक,
                  एहसासों को अन्दर तक झकझोर जाएं।

जिन्दगी के आईने को हम इतना चमकाएं,
कि बीते कल के अंधेरे इनमें घुल जाएं,
आनेवाला हर पल हो उज्जवल, खुशनुमा,
जिन्दगी की सुबहो-शाम खो इनमें जाए ।

मलयनील के उत्तुंग शिखरों तक तुम पहुचो,
कनक शिखर पर तेरे सूरज भी शीष झुकाएं,
कर्म पथ पर चलकर तुम बनो प्रेरणा जग में,
असंख्य शीष उठकर तुम्हें आशापूर्वक निहारे।

उड़ान: परिधियों के दायरे

परिधियों के दायरे

परिधियों मे संकुचित जीवन आदर्श,
परिधियों मे संकुचित उमरता विचार,
पर मानव व्यक्तित्व भरता कुलांचे,
जीवन्त सोच भरती नित नई उड़ान,
कुछ नया कर जाने को।

चाहूँ तोड़ना परिधियों के दायरे,
कर सकूँ स्थापित एक नया आदर्श,
जहां विचार हों स्वतंत्र उमरने को,
विश्व कल्याण हेतु कुछ करने को,
दिशा नई दिखा जाने को।

दायरे हों इतने विशाल,
पंख हो इनके इतने विस्तृत,
समाहित हो जाएं इनमें जनाकांक्षा,
विचार ले सके खुल के श्वाँस,
मंजिल नई पा जाने को।

धर्म, जाति, कुल, वंश का न रहे कोई भेद,
परिधियों के परे हो मेरी पहचान,
विश्व कल्यान हों जिनका आदर्श,
परिधि खुद हो सके विस्तृत,
समय के साथ बढ़ जाने को।

Tuesday 22 December 2015

चाहत की मंजिल

मेरी भीगी चाहतों को जैसे, आज मंजिल मिल गई
एक मुश्त खिलखिलाती, सुनहरी धूप मिल गई,
सफल हुई मेरी पूजा, ज़िन्दगी फूलों सी खिल गई।

कोई शिकायत न रही किश्तों मे मिली जिन्दगी से,
जिस निगाहे नूर की कमी थी,
वो निगाहें चश्मेबद्दूर मिल गई,

जी खोलकर की जब उसने मन की बातें,
रौशन लगने लगी हैं अब जीवन की राहें,
उसकी ज़रा सी नूर काफ़ी थी ज़िन्दगी के लिए,
किश्मत मेरी, मुझे विसाले यार मिल गई।

करती रही वो बेपरवाह मनगढंत शिकायतें,
कि तुमने ये क्युँ कहा? तुमने वो क्युँ नही कहा?
तुम्हारी भाषा भटक क्युँ गई? तुमने पूछा क्युँ नही?
बेपरवाह हँसती रही वो इन सवालों में,
जैसे निगाहे यार को भी सुकून मिल गई।

मैने देखा उस बेपरवाही में है जीवन अनंत, 
उन आँखों मे रौशनी है असीम, आशाएँ हैं दिगन्त,
साधना सफल हुई मेरी, जीवन हुआ जैसे पूर्ण
मुझे मेरी जीवन दिगन्त मिल गई।