Wednesday, 23 December 2015

मेरी अन्तरआत्मा की आवाज

किसी दोस्त ने टिप्पणी की,

ज़िन्दगी ख़ुद ब ख़ुद एक आइना है जो बयां करती है
बीते हुए कल की जो अंधेरी रात की तरह है
अौर सुबह का इन्तज़ार करती है आने वाले खुबसूरत पल की,

दूसरे बुजूर्ग दोस्त ने कहा.....

न आए लबों पे तो कागज़ पे लिख दिया जाए..
किसी खयाल को मायूस क्यों किया जाए__

मेरी अन्तरआत्मा ने जवाब दिया....

कागजों के लिखे तो मिट जाते हैं,
                  ख्याल वो जो दिलों पे लिखे जाएं,
महसूस हो जो जन्मो-जन्मों तक,
                  एहसासों को अन्दर तक झकझोर जाएं।

जिन्दगी के आईने को हम इतना चमकाएं,
कि बीते कल के अंधेरे इनमें घुल जाएं,
आनेवाला हर पल हो उज्जवल, खुशनुमा,
जिन्दगी की सुबहो-शाम खो इनमें जाए ।

मलयनील के उत्तुंग शिखरों तक तुम पहुचो,
कनक शिखर पर तेरे सूरज भी शीष झुकाएं,
कर्म पथ पर चलकर तुम बनो प्रेरणा जग में,
असंख्य शीष उठकर तुम्हें आशापूर्वक निहारे।

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