Monday 16 December 2019

बिखरो न यूँ

बिखरो न यूँ, मन के मनके, चुनो तुम,
चलो, सपने बुनो तुम!
सँवार लो, अपनी ही रंगों में,
ढ़ाल लो, हकीकत में, इन्हें तुम!

सपने ही हैं, गर टूट भी जाएँ तो क्या,
नए, सपने गुनो तुम!
उतर कर, निशा की छाँव में,
तम की गाँव के, तारे चुनो तुम!

बसे हैं इर्द-गिर्द, तुम्हारे सपनों के घर,
घर, कोई चुनो तुम!
बसा लो, इन्हें अपने नैन में,
बिखरे पलों को, समेट लो तुम!

या हों बिखरे, या चाहों मे रहे पिरोए,
उन्हीं की, सुनो तुम!
बिखर कर, स्वाति बूँदों में,
गगन से आ, सीप में गिरो तुम!

वस्तुतः, है अन्त ही, इक नया आरंभ,
पथ, अनन्त चुनो तुम!
राहें, बदल जाते हैं, मोड़ में,
हर छोड़ में, खुद से मिलो तुम!

बिखरो न यूँ, मन के मनके, चुनो तुम,
चलो, सपने बुनो तुम!
निराशा के, डूबे से क्षणों में,
नींव, आशा की, नई रखो तुम!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

10 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (17-12-2019) को    "मन ही तो है"   (चर्चा अंक-3552)   पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

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  2. वस्तुतः, है अन्त ही, इक नया आरंभ,
    पथ, अनन्त चुनो तुम!
    राहें, बदल जाते हैं, मोड़ में,
    हर छोड़ में, खुद से मिलो तुम!
    वाह!!!
    आशा और उम्मीद जगाता सूने मन में प्रीत जगाता
    बहुत ही लाजवाब सृजन।

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    1. हृदयतल से आभार आदरणीया सुधा देवरानी जी।

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  3. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 21 दिसम्बर 2019 को लिंक की जाएगी ....
    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

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  4. वस्तुतः, है अन्त ही, इक नया आरंभ,
    पथ, अनन्त चुनो तुम!
    राहें, बदल जाते हैं, मोड़ में,
    हर छोड़ में, खुद से मिलो तुम!

    बिखरो न यूँ, मन के मनके, चुनो तुम,
    चलो, सपने बुनो तुम!
    निराशा के, डूबे से क्षणों में,
    नींव, आशा की, नई रखो तुम!.... बहुत ही सुन्दर सृजन आदरणीय
    सादे

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    1. आदरणीया अनीता जी, रचना की अंतर्आत्मा से जुड़ने हेतु हार्दिक आभार ।

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  5. वाह!!क्या बात है !!पुरुषोत्तम जी ,बहुत खूब !
    अंत ही एक नया आरंभ है
    पथ ,अनंत चुनो तुम ...
    वाह ,लाजवाब !

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    1. आदरणीया शुभा जी, रचना की अंतर्आत्मा से जुड़ने हेतु हार्दिक आभार ।

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