वो, आसमां पे रब हुए.....
करुण स्वर, जिनके, कर जाते थे सहज,
पूर्वज मेरे, जिनके, हम हैं वंशज,
वो, आसमां पे रब हुए, दूर कब हुए!देकर आशीर्वचन, चल पड़े वो इक डगर,
दिया जन्म जिसने, अब वो ही नहीं इस घर,
तस्वीर, उनकी, बस रह गयी, इस नजर,
गूंजते, अब भी उनके मधुर स्वर,
ओझल नैन से वो, पर, दूर कब हुए!
वो, आसमां पे रब हुए.....
मन की क्षितिज पर, रमते अब भी वही,
छलक उठते, ये नयन, जब भी बढ़ती नमी,
यूं तो, घेरे लोग कितने, पर है इक कमी,
संग, उनकी दुवाओं का, असर,
वो हैं, इक नूर शब के, दूर कब हुए!
वो, आसमां पे रब हुए.....
उनके एहसान का, चुकाऊं उधार कैसे,
दी जो विरासत, उनका, रख लूं मान कैसे,
यूं ही होने दूं, पूर्वजों का अपमान कैसे,
ये कर्ज, हम पर, युग-युगांतर,
सर्वथा, इस ऋण से उबार कब हुए!
उन पूर्वजों को, हम, करते नित नमन,
तस्वीर वो ही, बसती मेरे मन,
वो, आसमां पे रब हुए, दूर कब हुए!
वो, आसमां पे रब हुए.....

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