Wednesday, 12 September 2018

यूँ भी होता

यूँ भी होता............

मन के क्षितिज पर,
गर कहीं चाँद खिला होता,
फिर अंधेरों से यहाँ,
मुझको न कोई गिला होता!

अनसुना ना करता,
मन मेरे मन की बातें सुनता,
बातें फिर कोई यहाँ,
मुझसे करता या न करता!

हो मन में जो लिखा,
गर कोई कभी पढ़ लेता,
लफ़्ज़ को यूँ शब्दों में,
ढ़लकर ना ही जलना होता!

करीब रहकर भी,
न फासला मिटा होता,
बेवजह गले मिल ले,
ऐसा न गर कोई मिला होता!

दिल तक पथ होता,
दूरी न ये तुम तक होता
थकता न ये पथिक,
मुश्किल भरा ना पथ होता!

गम से मन टूटता,
मन गैरों के गम में ही रोता,
भूले से भी गम कोई,
फिर दुश्मन को भी न देता!

यूँ भी होता..........

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